सास ने सिखाया रसखीर व महेरी बनना
बुंदेलखंड में कुछ व्यंजन बनाकर दूसरों को आमंत्रित कर खिलाने की परंपरा रही है। ऐसे में बहुएं अपनी सास से परंपारागत बुंदली व्यंजन सीख रही हैं, ताकि उनके हाथ से बने व्यंजन खाकर सब उनकी तारीफ करें। गन्ने के रस में पके हुए चावलों को रसखीर कहते हैं। इस भोजन के लिए दूसरों को निमन्त्रित भी किया जाता है। भगवती सेन की बहु खुशबू सेन ने अपनी सास से रसखीर बनाना सीखा है। पहली बार रसखीर बनाक र खुशबू बहुत खुश है, क्योंकि उनकी खीर की घर के सभी लोगों ने तारीफ की है। उन्होंने महेरी भी बनाना सीखा है। ज्वार का दलिया म_े में चुराया (पकाया) जाता है। जरा-सा नमक डाल देते है। यह मिट्टी के बर्तन में अधिक स्वादिष्ट बनती है।
मिठाई नहीं तो पूड़ी के बना दिए लड्डू
राजकुमारी अवस्थी ने बूंदी के लडूओं की तरह ही बुंदली व्यंजन पूड़ी के लड्डू बनाकर परिवार को मिठाई का स्वाद चखा रही हैं। उन्होंने बताया कि बैसे तो ये आर्थिक रुप से कमजोर लोग बूंदी के लड्डू की जगह बनाते हैं। ये त्यौहारों पर या बुलउआ के लिए बनाए जाते हैं। बेसन की बड़ी एवं मोटी पूडिय़ां तेल में सेंककर हाथों से बारीक मीड़ी (मींजी) जाती है। फिर उन्हें चलनी से छानकर थोड़े से घी में भूना जाता है। उसके बाद शक्कर या गुड़ डाल कर हाथों से बांधा जाता है। कहीं-कहीं पर स्वाद बनाने के लिए इनमें इलायची या काली मिर्च भी पीसकर मिला दी जाती है।
बहु ने चखाया बफौरी का स्वाद
अभिलाषा अवस्थी ने बताया कि बुंदेली व्यंजन घर में बनाए जा रहे हैं। उन्होंने बुंदेली व्यंजन बफौरी बनाए हैं। मिट्टी या धातु के बर्तन में पानी भरकर उसके मुंह पर कोई साफ कपड़ा बांध देते है। उसे आग पर खौलाते हैं। जब वाष्प निकलने लगती हैं, तब उस पर बेसन की पकौडिय़ां सेंकते हैं। इन पकौडिय़ों को कड़ाही में लहसुन, प्याज, धनियां हल्दी एवं मिर्ची मसालों के मिश्रण को घी या तेल में छौंक कर पकाया जाता है। इसे शाक की तरह भोजन में खाया जाता है। उन्होंने बताया कि बेसन के आलू भी परिवार के लोगों को खूब भा रहे हैं। सूखे हुए आंवलों को घी या तेल में भून कर और पत्थर पर पीसकर बेसन में मिलाते है। और उस मिश्रण से आलू के समान छोटे-छोटे लड्ड़ू बना लेते है। इन्हें खौलते पानी में पकाते है। फिर चाकू से छोटे-छोटे काटकर तेल या घी में भूनते हैं। इसके बाद मसालों के साथ छौंक कर कड़ाही या पतीली में बनाते हैं। ये बहुत अधिक स्वादिष्ट बनते है।