जब निगरानी रुकती है, तो जिम्मेदारी भी बिखर जाती है
बीते वर्ष शहरवासियों ने ट्रैफिक उल्लंघन पर 57 लाख रुपए से ज्यादा का जुर्माना भरा था। इसका सीधा सा मतलब है कि कैमरों की मौजूदगी में डर बना रहता था। लेकिन अब जब इन डिजिटल आंखों ने पलकें झपकाई हैं, तो नियमों की अनदेखी आम हो गई है। ऐसा लग रहा है जैसे यह शहर कैमरा ऑन, तो नियम ऑन और कैमरा ऑफ, तो नियम ऑफ की मानसिकता बन गई है।
नियम टूटते रहे, हादसे बनते रहे आंकड़े
आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति और गंभीर हो जाती है। बीते तीन वर्षों में जिले में 2142 सडक़ हादसे हुए, जिनमें 744 लोगों ने अपनी जान गंवाई और 1886 लोग घायल हुए। ज़्यादातर मामलों में लापरवाही ही मौत की वजह बनी,कोई हेलमेट नहीं पहन रहा था, कोई सीट बेल्ट से परहेज कर रहा था, तो कोई तेज रफ्तार या गलत दिशा में वाहन चला रहा था। ये हादसे सिर्फ आंकड़े नहीं, हर एक के पीछे किसी का परिवार, किसी की जिंदगी बर्बाद हुई है। एक छोटी सी चूक, एक नियम का उल्लंघन और पूरा जीवन उलट-पलट हो जाता है।
हेलमेट नहीं, है कोई विकल्प?
बाइक पर हेलमेट पहनना ज़रूरी है, लेकिन जब शहर में यह नियम महज एक औपचारिकता बन जाए, तो दुर्घटनाएं लाजिमी हैं। ऐसे में जब सडक़ पर दो पहिया वाहन चालक बिना हेलमेट के रफ्तार भरते हैं, तो सिर्फ खुद नहीं, दूसरों के लिए भी खतरा बन जाते हैं।
जिम्मेदार कौन?
यातायात प्रभारी बृहस्पति साकेत के अनुसार सर्वर की मरम्मत के चलते फिलहाल कैमरा आधारित चालान प्रक्रिया अस्थायी रूप से बंद है। हालांकि उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि कैमरे कार्यशील स्थिति में हैं और भोपाल से सर्वर अपडेट होते ही चालान की प्रक्रिया फिर से शुरू हो जाएगी। इस बीच, नियमों के पालन को लेकर जागरूकता और मैनुअल कार्रवाई जारी है। फैक्ट फाइल पिछले 3 वर्षों में कुल हादसे- 2142 मृतकों की संख्या- 744 घायल हुए लोग- 1886