प्रतिभाओं के भविष्य पर संकट
छतरपुर जिले में हायर सेकंडरी और हाईस्कूल मिलाकर कुल 218 विद्यालय हैं, जिनमें 1.14 लाख विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं। यदि कक्षा 1 से 12वीं तक के सभी स्कूलों की बात करें, तो कुल 1939 स्कूलों में 4.81 लाख विद्यार्थी पंजीकृत हैं। लेकिन खेल की शिक्षा देने वाले प्रशिक्षकों की संख्या मात्र 12 है। नतीजा यह कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिभाशाली खिलाड़ी प्रशिक्षण और मंच दोनों से वंचित हैं। इन विद्यालयों में प्रशिक्षकों की नियुक्ति न होने से न तो छात्र खेल की बारीकियों को समझ पाते हैं, न ही राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है। हर वर्ष हजारों प्रतिभाएं बिना पहचान के गुमनामी में खो जाती हैं।
कागजों पर चल रही स्कूलों में खेल गतिविधियां
शिक्षा विभाग के नियमानुसार प्रत्येक हायर सेकंडरी और हाईस्कूल में एक प्रशिक्षक अनिवार्य रूप से होना चाहिए। लेकिन यह व्यवस्था वर्षों से सिर्फ फाइलों में चल रही है। खेल गतिविधियों की अनुपलब्धता के चलते विद्यार्थी न तो उत्साहित हो पाते हैं, न ही खेलों में करियर बनाने की दिशा में कोई पहल कर सकते हैं।
स्पोट्र्स किट में भी भ्रष्टाचार, बच्चों के हाथ खाली
शिक्षा विभाग द्वारा हर स्कूल को खेल सामग्री के लिए वार्षिक फंड दिया जाता है। हायर सेकंडरी स्कूल को 25000 और मिडिल स्कूल को 15000। लेकिन यह राशि भी घोटालों की भेंट चढ़ जाती है। लवकुशनगर और बकस्वाहा में बीते वर्षो में किट खरीदी को लेकर हुए घोटालों की जांच की मांग उठी थी, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई। परिणामस्वरूप अधिकतर स्कूलों में स्पोट्र्स किट नदारद है।
ग्रामीण क्षेत्र में मैदान है, मगर मार्गदर्शन देने वाले नहीं
ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के पास खेलने के मैदान तो हैं, लेकिन उन्हें खेल की विधियों, तकनीकी और प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करने वाला कोई नहीं है। जिला मुख्यालय पर ही सभी प्रशिक्षकों को पदस्थ कर देने से यह असमानता और भी गहरी हो जाती है। जिले में हर साल होने वाले जिला स्तरीय खेलों में भी ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थी पिछड़ते दिखते हैं।
न नियुक्ति, न योजना, न समाधान
2018 के बाद खुले कुछ स्कूलों में सरकार ने पीटीआई रखने की बात कही थी, लेकिन अब तक भर्ती नहीं हो सकी। शिक्षा विभाग के अधिकारी सिर्फ पत्राचार का हवाला दे रहे हैं, जबकि धरातल पर कोई सुधार नहीं हो रहा। जहां बच्चों को खेल के लिए समान अवसर मिलने चाहिए, वहां अफसरशाही और लापरवाही से उन्हें सपनों के बजाय सीमाएं दी जा रही हैं। यदि सरकार और शिक्षा विभाग जल्द इस दिशा में गंभीरता नहीं दिखाते, तो यह लापरवाही अगली पीढ़ी की संभावनाओं का हनन बन जाएगी।
इनका कहना है
जिले में 2018 के बाद खुले स्कूलों में स्थायी रूप से पीटीआई रखने के निर्देश प्रदेश शासन द्वारा दिए गए हैं। भर्ती प्रक्रिया लंबित है। शासन से पत्राचार किया गया है, और जो संसाधन उपलब्ध हैं, उनके बेहतर उपयोग का प्रयास हो रहा है। आरपी प्रजापति, जिला शिक्षा अधिकारी