केवल 40 फीसदी कचरे का हो रहा निष्पादन
हर रोज शहर से करीब 50 टन कचरा निकलता है, लेकिन इसमें से केवल 40 प्रतिशत कचरे का रिड्यूज (कम करना), रीयूज (पुन: उपयोग करना), रिसाइकिल (पुनर्चक्रण) और रिफ्यूज (अस्समर्थ) किया जा रहा है। बाकी 60 प्रतिशत कचरे का उपयोग करने के लिए कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कचरा प्रसंस्करण केंद्र के आसपास लगभग एक किमी के दायरे में कचरे के ढेर लगे हुए हैं, जिनका अभी तक सही तरीके से उपयोग नहीं किया जा सका है। हालांकि, एमआरएफ यूनिट के माध्यम से प्लास्टिक और कांच को अलग कर उसे रिसाइकलिंग योग्य बनाया जा रहा है। इसके अलावा, टायर के कचरे से गमले, कुर्सी और टेबल भी बनाए जा रहे हैं। इन कबाड़ से सामग्री का उपयोग कर न्यू कॉलोनी में एक पार्क भी तैयार किया गया है।
पारंपरिक कचरा प्रबंधन से आधुनिक कचरा प्रसंस्करण तक की यात्रा
दस साल पहले तक शहरों में कचरे का कोई उचित प्रबंधन नहीं था। कचरा गली-कूचों से उठाकर बिना किसी परवाह के बाहर फेंक दिया जाता था। इस कारण कचरे में सडऩ आ जाती थी और पूरे इलाके में दुर्गंध फैल जाती थी। लेकिन अब स्थिति में बदलाव आया है। नपा कचरे का उपयोग तो कर रही है, लेकिन अब भी 60 प्रतिशत कचरे का पुन: उपयोग नहीं हो पा रहा है।
तीन आर का सिद्धांत लागू करना मुश्किल
तीन आर का सिद्धांत रिड्यूस (कम करना), रीयूज (पुन: उपयोग करना) और रीसाइकिल (पुनर्चक्रण) कचरे के सही तरीके से प्रबंधन में सहायक साबित हो सकता है। लेकिन, इसका सही तरीके से पालन करना आसान नहीं है। नपा शहर से दो प्रकार का कचरा कलेक्ट करती है, गीला कचरा (जैसे रसोई का कचरा, फल के छिलके, सड़े हुए फल, सब्जियां, बचा हुआ भोजन) और सूखा कचरा। गीले कचरे से जैविक खाद (वर्मी कंपोस्ट और जैविक खाद) तैयार की जाती है, जबकि सूखे कचरे का पृथक्करण कर उसे बेचा जाता है।
तीन महीने में 100 क्विंटल खाद
गीले कचरे से हर तीन महीने में 100 क्विंटल खाद तैयार की जाती है, जिसे 500 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों को बेचा जाता है, लेकिन खरीदारों की कमी के कारण इसे पूरा नहीं बेचा जा पाता है। इसके अतिरिक्त, कचरा प्रसंस्करण केंद्र में सीएनडी वेस्ट (निर्माण कार्य से निकला मलबा) को भी लाकर उपयोग में लाया जाता है, जो कि किसी तरह से पुराव (भराई कार्य) के रूप में तैयार किया जाता है।
बायो वेस्ट का निस्तारण भी चुनौती
नपा के पास बायो वेस्ट (चिकित्सकीय कचरा) के निस्तारण के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि यह कचरा कभी-कभी निकलता है और तब नपा को इसे निजी अस्पतालों के माध्यम से निस्तारित करना पड़ता है। निजी अस्पतालों का सतना स्थित एक कंपनी से टाइअप है, जो बायो वेस्ट का संग्रहण करती है। इस कचरे का निस्तारण बहुत गंभीर समस्या बन गया है क्योंकि जब कभी भी बायो वेस्ट मिलता है, तब उसे ही हैंडओवर कर दिया जाता है।
आधुनिक मशीनों से होगा समाधान
सीएमओ माधुरी शर्मा ने बताया कचरा प्रसंस्करण केंद्र में अब आधुनिक मशीनों के लगाने का प्रस्ताव भेजा गया है। जैसे ही भोपाल से स्वीकृति मिलती है, मशीनों की खरीद की जाएगी, जिससे कचरे के प्रसंस्करण में सुधार आ सकेगा। वर्तमान में कचरे के निस्तारण में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन फिर भी जितना संभव हो, कचरे को उपयोगी बनाने की कोशिश की जा रही है।
पत्रिका व्यू
शहर में कचरे का बढ़ता ढेर और उसे सही तरीके से निस्तारित करने में आई चुनौतियां न केवल नगर पालिका के लिए बल्कि शहरवासियों के लिए भी चिंता का कारण बन चुकी हैं। अब समय आ गया है कि हम अपने कचरे के प्रबंधन में सुधार लाएं और गीले-सूखे कचरे के पृथक्करण को लेकर अधिक जागरूकता फैलाएं। केवल इस तरह ही हम अपने शहर को स्वच्छ और स्वस्थ बना सकते हैं।