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छतरपुर

अभियान से घटी संख्या, लेकिन अब भी छतरपुर प्रदेश के सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में शामिल

प्रदेश के 21 जिलो में फाइलेरिया के मरीज है, लेकिन 55 फीसदी मरीज केवल बुंदेलखंड के छह जिलो में ही है। जिसमें दतिया को छोडकऱ सागर संभाग के पांच जिलो में ही 50 फीसदी केस चिंहित है।

छतरपुरNov 24, 2024 / 11:04 am

Dharmendra Singh

water logging

इस तरह का जलभराव मच्छरोंं को दे रहा अनुकूल माहौल

छतरपुर. प्रदेश के 21 जिलो में फाइलेरिया के मरीज है, लेकिन 55 फीसदी मरीज केवल बुंदेलखंड के छह जिलो में ही है। जिसमें दतिया को छोडकऱ सागर संभाग के पांच जिलो में ही 50 फीसदी केस चिंहित है। सबसे ज्यादा मरीज वाले बुंदेलखंड के छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, दमोह, सागर और दतिया में फाइलेरिया के उन्नमूलन के लिए विशेष अभियान हर साल चलाया जा रहा है। इससे मरीजों की संख्या बढऩे की रफ्तार थमी है, लेकिन अभी भी ग्रामीण इलाके में जागरुकता की कमी के चलते फाइलेरिया पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लग पाया है। स्वास्थ विभाग ने भी बीमारी को जड़ से खत्म करने का कोई टारगेट नहीं रखा है। बस सामान्य रुप से हर साल अभियान चलाया जा रहा है।

अभियान के असर से नए मरीज मिलने की रफ्तार हुई कम


छतरपुर जिले में फाइलेरिया के मरीजों की संख्या पिछले दो साल में घटी है। जिले में सक्रिय 932 मरीजों में से अब 614 केस ही एक्टिव हैं, दो साल में 318 मरीज कम हुए हैं। लेकिन अभी भी मच्छर जनित इस बीमारी के प्रति लोगों में जागरुकता की कमी है। जिसके चलते पूरे जिले में ग्रामीण इलाके में फाइलेरिया के मरीज मिल रहे हैं। हालांकि जिले में केवल सटई क्षेत्र ही एक ऐसा इलाका है, जहां फाइलेरिया का एक भी मरीज नहीं है। जबकि जिले के छोटे छोटे गांवों में मरीज मिल रहे हैं।

ये बुंदेलखडं में हालात


स्वास्थ्य विभाग ने क्यूलेक्स मच्छर के कारण होने वाली लिम्फैटिक फाइलेरिया बीमारी एवं इसी मच्छर से होने वाली हाइड्रोशील बीमारी के आंकड़ों के आधार पर एक सूची तैयार की गई है। जिसमें प्रदेश के 12 जिलों में सबसे ज्यादा खतरा सामने आया है। इन 12 जिलों में से 6 जिले बुन्देलखण्ड के हैं। जहां इन बीमारियों के सबसे ज्यादा रोगी सामने आए हैं। छतरपुर में फाइलेरिया बीमारी के 614, टीकमगढ़ में 232, दमोह में 147, दतिया में 187, सागर में 30, पन्ना में 660 मामले सामने आए हैं। इसका मतलब साफ है कि पन्ना व छतरपुर जिले में सर्वाधिक फाइलेरिया के मरीज मौजूद हैं।

6 साल बाद उभरते हैं लक्षण


डॉ. सोनल ने बताया कि आमतौर पर रूके हुए एवं गंदे पानी में क्यूलेक्स मच्छर के लार्वा पनपते हैं। यह मच्छर जब किसी व्यक्ति को काटता है तो शुरूआती 6 से 8 साल तक फाइलेरिया और हाइड्रोशील बीमारियों का पता ही नहीं लग पाता। लगभग 6 साल बाद इन बीमारियों के लक्षण उभरते हैं लेकिन तब तक यह बीमारी लाइलाज हो जाती है। दवाइयों के जरिए इस बीमारी को नियंत्रित रखा जा सकता है लेकिन जड़ से नष्ट नहीं किया जा सकता। इस बीमारी के कारण पैरों में सूजन, गठान जैसी समस्याएं हो जाती हैं जिससे पैर हाथी पांव के रूप में बदल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस बीमारी को हाथी पांव के नाम से भी जाना जाता है।

फैक्ट फाइल


छतरपुर जिले में केस
नौगांव 13
ईशानगर 114
छतरपुर शहर 87
बड़ामलहरा 47
बकस्वाहा 49
राजनगर 67
लवकुशनगर 81
गौरिहार 156
कुल- 614

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