माता शबरी के बचपन का नाम श्रमणा था। लेकिन शबर जाति से होने के कारण उन्हें शबरी के नाम से भी जाना जाने लगा। शबरी का बचपन से ही वैराग्य के प्रति मन था। राजा अज एवं भील रानी इन्दुमति, उनके इस व्यवहार से परेशान थे। इसलिए उन्होंने शबरी का विवाह कराने का निश्चय किया।
शबरी का अपनी मां से सवाल
एक दिन शबरी ने जब अपने घर के बाड़े में अनेक पशु-पक्षियों को देखा तो अपनी मां से उन पशु-पक्षियों के वहां होने का कारण पूछा। माता इन्दुमति ने कहा इन सभी पशु-पक्षियों से तुम्हारे विवाह का भोजन तैयार किया जायेगा। यह सुनकर शबरी को बड़ा दुख हुआ और उन्होंने मन ही मन विवाह नहीं करने का निश्चय किया। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक एक रात शबरी ने सभी के सो जाने के बाद बाड़े के किबाड़ खोल दिये और सभी पशु-पक्षियों को रिहा कर दिया। ऐसा करते हुए श्रमणा को किसी ने देख लिया। जिससे भयभीत होकर शबरी वहां से भगाकर ऋष्यमूक पर्वत पर चली गयीं। जहां हजारों ऋषिगण निवास करते थे।
मातंग ऋषि ने अपनी पुत्री के रूप में शबरी को अपनाया
शबरी गुप्त रूप से उस पर्वत पर निवास करने लगीं। वह प्रतिदिन ऋषियों की कुटिया के बाहर झाड़ू लगाकर हवन के लिए लकड़ियां चुनकर लातीं। लेकिन उन्हें ऐसा करते हुए कभी किसी ने देखा नहीं था। एक दिन भोर में आकर ऋषिगणों ने शबरी को देख लिया और उनसे परिचय पूछा। माता शबरी ने ऋषिगणों को अपना परिचय दिया। जिसके बाद मातंग ऋषि ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार कर लिया और अपने आश्रम ले गए।
माता शबरी ने पिता तुल्य गुरु के वचनों का किया पालन
जब मातंग ऋषि का अन्तिम समय निकट आया तो माता शबरी बहुत दुखी होकर बोलीं कि एक पिता को मैं छोड़ कर आयी थी। अब मेरे दूसरे पिता मुझे छोड़ कर जा रहे हैं। मेरे जीवन का क्या उद्देश्य रहे जायेगा? तब मातंग ऋषि ने उन्हें भगवान श्री राम के विषय में बताया और उनकी प्रतीक्षा करने को कहा।
गुरु वचनों का पालन
माता शबरी ने अपने पिता तुल्य गुरु के वचनों का पालन करते हुए भगवान राम को अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। वह नित्य-प्रतिदिन प्रभु श्री राम की प्रतीक्षा में मार्ग को बुहारा करतीं। उनके लिये वन से मीठे-मीठे फल चखकर लाती थीं। भगवान श्रीराम अनुज लक्ष्मण जी के साथ शबरी की कठिन तपस्या से खुश होकर अपने वनवास काल के समय शबरी जी की कुटिया पर पहुंचे। इसके साथ ही प्रेमपूर्वक उनके जूठे बेरों का सेवन कर उनका उद्धार किया।
श्रीराम की सुग्रीव से भेंट
इसके बाद माता शबरी ने भगवान श्री राम को वानरराज सुग्रीव से भेंट के सन्दर्भ में अवगत कराया। जिन्होंने माता सीता की खोज में श्री राम जी की सहायता की थी। माता शबरी का जीवन अपने आराध्य के प्रति अगाध भक्ति, गुरुनिष्ठा, दया, तप एवं विश्वास का जीवन्त उदाहरण है। डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।