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महिला को जानने से बलात्कार का लाइसेंस नहीं मिल जाता, हाईकोर्ट सख्त, याचिका निरस्त करने से इनकार

MP High Court on Rape: रेप मामले में सख्त हाई कोर्ट ने रेप, एट्रोसिटीज एक्ट और मारपीट की एफआईआर निरस्त करने से किया इनकार

ग्वालियरApr 11, 2025 / 10:56 am

Sanjana Kumar

MP High Court

MP high court Gwalior

MP High Court on Rape Case: हाईकोर्ट की एकल पीठ ने बलात्कार, एट्रोसिटीज एक्ट व मारपीट की एफआईआर निरस्त करने से इनकार करते हुए नजीर पेश करने वाला आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि एफआईआर दर्ज करने में हुई देर का रूढ़ीवादी तर्क अब समाप्त हो गया है। इसलिए सिर्फ देरी की वजह से एफआईआर निरस्त नहीं की जा सकती। न ही किसी पुरुष को महिला को जानने से उसके साथ बलात्कार करने का लाइसेंस मिल जाता है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि एफआईआर दो महीने देर से की गई। महिला याचिकाकर्ता को पहले से ही जानती थी। सहमति के संबंध है। शासन की ओर से याचिका का विरोध करते हुए कहा कि बयानों से अपराध की पुष्टि होती है और एफआईआर को निरस्त नहीं किया जा सकता है। बदनामी के डर से महिला ने घटना किसी को नहीं बताई। कुछ समय बाद पति घटना के बारे में बताया गया। इसके बाद थाने पहुंचे। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता उसे तीन साल से जानता था। उसके पहचान के दावे पर कोर्ट ने कहा, इससे पुरुष को बलात्कार का लाइसेंस नहीं मिल जाता। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

क्या है मामला


दरअसल मुरैना के रामपुर थाने में रघुराज गुर्जर के खिलाफ मारपीट, एट्रोसिटीज एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज हुआ। 8 जुलाई 2024 को वह शौच के लिए जा रही थी। रास्ते में रघुराज गुर्जर मिला और हाथ पकड़कर अपने साथ ले गया। उसके साथ बलात्कार की घटना की घटना को अंजाम दिया। पीडि़ता रघुराज को तीन साल से जानती थी। बलात्कार के बाद उसे धमकाया कि घटना किसी को बताई तो जान से मार देगा। महिला उसकी धमकी से डर गई। 9 सितंबर 2024 को एफआईआर दर्ज कराई गई।


नजीर बनेगा यह आदेश, कानून के जर्नल में छपेगा


याद रखना चाहिए कि कानून में एफआईआर दर्ज करने का समय निश्चित नहीं है। इसलिए देरी से दर्ज की गई एफआईआर अवैध नहीं है। बेशक एफआईआर तुरंत दर्ज करना एक आदर्श स्थिति होती है। पहला तत्काल एफआईआर से बिना चूक के तुरंत जांच शुरू हो जाएगी। दूसरा झूठे गवाह गढ़ने का मौका नहीं मिलेगा। हाईकोर्ट ने इस आदेश को अप्रूव फॉर रिपोर्टिंग किया है। इस आदेश को कानून के जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा, जो इस तरह के मामलों में नजीर बनेगा।

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