बंजारा समुदाय के लोगों ने कहा कि बंजारा समाज का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी बहुत कम हैं। हालांकि अब बंजारा समुदाय अपने अधिकारों के लिए धीरे-धीरे जागृत हो रहा है। देश में घुमंतू जातियां, जो कभी भी एक स्थान पर नहीं रहती वे पारथी, सांसी, बंजारा तथा बावरिया आदि मानी जाती हैं। इसमें बंजारा समुदाय को सबसे बड़ा समुदाय माना जाता है। देश ही नहीं विदेश में भी बंजारा समुदाय हर जाति और धर्म में विद्यमान है। देश विदेश में यह समुदाय कई नामों से जाना जाता है। भारत में गोर बंजारा, बामणिया बंजारा, लदनिया बंजारा आदि के नाम से भी इसे जानते हैं। वनजारा शब्द से ही बंजारा शब्द बना है। भारत में मुख्य रूप से बंजारा समाज की 51 से अधिक जातियां पाई जाती हैं।
बंजारा समाज के लोगोंं ने कहा, एक शोध के अनुसार बंजारा एक व्यापारिक समाज रहा है। व्यापार करने की दृष्टि से ही बंजारा समाज के लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर डेरा डालते रहते थे। मुगल और अंग्रेजों के काल में इन्हें सामग्री और रसद भेजने के काम में लगा दिया गया तब से बंजारा समाज की की दशा बदल गई। बंजारा समाज जहां से भी गुजरता और डेरा डालता था वहां पर वह जल की व्यवस्था जरूर करता था। उन्हीं के कारण कई जगहों पर कुएं, बावड़ी और तालाब का निर्माण हुआ है। पशुपालन और पशुओं की रक्षा का कार्य भी इसी समाज ने संभाला।
समाज के लोगों ने कहा कि देश और धर्म के विकास में बंजारा समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस समाज में भी कई बड़े संत हुए हैं। बंजारा धर्मगुरु संत सेवालाल सबसे बड़ा नाम है। बंजारा समाज में संतों के अलावा कई वीर योद्धा भी हुए जिन्होंने मुगलों और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। चाहे गोरा बादल हो या जयमल फत्ता, संत सेवालाल हो या फिर रूप सिंह महाराज जिसको समाज अपना आदर्श मानता है। बंजारा समुदाय के लोकगीत, लोककथा, वेशभूषा, खान पान, रीति रिवाज, लोकोक्ति, भाषा, बोली आदि कई बातें बहुत ही रोचक है। इसके संरक्षण की जरूरत है।