विश्नोई समाज इलकल के अध्यक्ष एवं समस्त विष्णु समाज के प्रवक्ता भरत विश्नोई गोदारा लियादरा ने कहा, विश्नोई समाज हरे वृक्षों को काटने एवं जीवों की हत्या को पाप मानता है। विश्नोई समाज के लोग चाहे कहीं भी रहते हैं, वे हमेशा पेड़-पौधों, वन एवं वन्य जीवों के रक्षा करने में आगे रहते हैं। विश्नोई समाज की स्थापना करने वाले गुरु जम्भेश्वर भगवान ने 29 नियमों की आचार-संहिता बनाई थी। हर विश्नोई इसका पालन करता है। गुरु जांभोजी के 29 नियमों में विश्व कल्याण की भावना निहित है। विश्नोई संप्रदाय में खेजड़ी को पवित्र पेड़ माना जाता है।1730 में राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली नामक स्थान पर जोधपुर के महाराजा की ओर से हरे पेड़ों को काटने से बचाने के लिए अमृता देवी ने अपनी तीन बेटियों आसू, रत्नी और भागू के साथ अपने प्राण त्याग दिए। उनके साथ 363 से अधिक अन्य विश्नोई खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए शहीद हो गए। विश्नोई समाज में अमृता देवी को शहीद का दर्जा दिया गया है। जहां-जहां विश्नोई समाज बसे है। वहां जानवरों की रक्षा के लिए वह अपनी जान तक दे देते है। वर्षों से विश्नोई समाज इन धर्मों को निभा रहा है। पर्यावरण संरक्षण एवं जीव-जंतुओं की रक्षा के लिए सदैव आगे रहने वाला विश्नोई समाज पक्षियों के संरक्षण की मुहिम में जुटा है।
समस्त विष्णु समाज इलकल के अध्यक्ष जबराराम चौधरी दांतवाड़ा ने कहा, पर्यावरण संरक्षण की पहल के तहत यह घोंसले लगाए गए हैं। इससे निश्चित ही पक्षियों को बचाने का महत्ती कार्य हो सकेगा। मौजूदा दौर में पशु-पक्षियों का संरक्षण बहुत जरूरी हो गया है। यदि पर्यावरण साफ व स्वच्छ रहेगा तो मानव जीवन को भी इसका फायदा मिलेगा। जब भी हमें समय मिले इस तरह पक्षियों की सेवा कार्य में हाथ बंटाना चाहिए। प्राचीन काल से पक्षियों को दाना-चुग्गा देने की हमारी सनातन संस्कृति की परम्परा रही है। इसे हम आज भी निभा रहे हैं।
समस्त विष्णु समाज इलकल के सलाहकार ओमदास वैष्णव मैली ने कहा, मौजूदा समय में पेयजल की किल्लत गहराती जा रही है। ऐसे में कई बार पक्षियों को पानी नहीं मिल पाता। इसके साथ ही पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के चलते पक्षी अपना घोंसला भी नहीं लगा पाती। ऐसे में पक्षियों की बचाने के लिए पर्यावरण प्रेमी आगे आए हैं। यह पहल निश्चित ही सराहनीय है।