रोटे का चूरमा है राम भक्त हनुमान को प्रिय
मान्यता है कि रामभक्त हनुमान को रोटे के चूरमे का भोग अत्यंत प्रिय है। इसी परंपरा के तहत यहां आटे का एक ही रोट, यानी ‘एकल रोट’ तैयार किया जाता है। इसको बनाने में 200 से 351 किलो तक आटा उपयोग में लिया जाता है। इसके बाद इस रोट का चूरमा बनाकर उसमें देसी घी, शक्कर और मेवे मिलाए जाते हैं और प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है।
दो दिन की मेहनत से बनता है रोट
विशाल एकल रोट बनाने का कार्य कोई साधारण बात नहीं है। इसे तैयार करने में दो दिन लगते हैं। पहले आटे को दूध से गूंथकर परात में रोटे की आकृति दी जाती है, फिर उसे सूती कपड़े व जूट के बारदानों से ढककर भाप से पकने की प्रक्रिया के लिए तैयार किया जाता है। इसके बाद इसे गोबर की थेपडिय़ों से सुलगाए गए अंगारों पर रखा जाता है – नीचे और ऊपर दोनों तरफ से। 351 किलो रोट को पकने में 48 घंटे लगते हैं।
विशेषज्ञों की टीम करती है निर्माण
पोकरण के जगदीश जोशी और ओमप्रकाश बिस्सा जैसे रोटा विशेषज्ञों की टीम इस कठिन प्रक्रिया को अंजाम देती है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी यदि कहीं एकल रोट बनाना हो, तो इन्हीं विशेषज्ञों को बुलाया जाता है।
सैकड़ों किलो चूरमा तैयार
सालमसागरधीश और बांकना मंदिर में इस वर्ष 351-351 किलो आटे के रोट से करीब एक-एक हजार किलो चूरमा तैयार किया जाएगा। इसमें 75 किलो दूध, 50 किलो देसी घी, 40 किलो शक्कर और 20 किलो सूखा मेवा डाला जाएगा। यह प्रसाद रामभक्त हनुमान को चढ़ाने के बाद मंदिर में आने वाले हजारों श्रद्धालुओं में वितरित किया जाएगा।