संरक्षण की दरकार
फोग की झाडिय़ां विशेष रूप से मरुस्थलीय इलाकों, शुष्क मैदानी क्षेत्रों गंगानगर, पंजाब आदि क्षेत्रों में अधिकतर पाई जाती है। मरुस्थल क्षेत्र के बहुउपयोगी झाड़ी को वनस्पति की विलुप्त होती झाडिय़ों में सम्मिलित कर इसके संरक्षण के प्रयास नहीं किए गए तो पश्चिमी राजस्थान से हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी। फोग की झाडिय़ां सर्वाधिक रूप से सीमावर्ती नाचना क्षेत्र में पाई जाती थी। यहां इन्दिरा गांधी नहर से हो रही सिंचाई व आधुनिक कृषि यंत्रों की चपेट में आने से फोग की झाडिय़ां लुप्तप्राय होती जा रही है। इसके अलावा पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में गए नवतला, केरू, बालाना, काहला, सोजिया, एटा सहित 20 गांवों में सर्वाधिक फोग की झाडिय़ां पाई जाती थी। यहां आए दिन होने वाले युद्धाभ्यास व फायरिंग के दौरान भी झाडिय़ां समाप्त हो गई। यहां आम लोगों व पशुओं का जाना भी प्रतिबंधित है। इसी प्रकार फलसूंड, भणियाणा, लाठी, चांधन, अजासर, लोहारकी, चांदसर, बरड़ाना, नया नवतला व आसपास क्षेत्र के रेतीले धोरों में पाई जाती थी, लेकिन किसानों की ओर से कृषि कार्यों व खेती के दौरान उन्हें काट दिया गया है। क्षेत्र के वनस्पति विशेषज्ञों के अनुसार फोग प्रजाति की वनस्पति व झाड़ी को बचाने के लिए इंटरनेशनल यूनियन फोर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज आईयूसीएन की रेड डेटा बुक में सिफारिश सूची में भी सम्मिलित किया गया है।