राजस्थान-हरियाणा सीमा के अंतिम छोर पर स्थित टीबा बसई गांव में दुग्धभागा नदी के किनारे बना रामेश्वरदास धाम देश के अनूठे मंदिरों में से एक है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि कला और वास्तुकला के मामले में भी यह एक अद्वितीय स्थल है। यहां सभी देवी-देवताओं की मूर्तियां एक साथ स्थापित की गई हैं। इसमें मां अन्नपूर्णा, नव दुर्गा, लक्ष्मी, गणेश, शिव, हनुमान सहित सैकड़ों देवताओं मूर्तियां हैं। खास बात यह है कि मंदिर में कोई नकद दान नहीं लिया जाता, यहां आने वाले हर भक्त को मिश्री और पेड़ों का प्रसाद दिया जाता है।
मंदिर की दीवारों पर हजारों तैलीय चित्र बने हैं, जिनमें देवी-देवताओं, ऋषियों, महात्माओं, शक्ति पीठों और नव दुर्गा के चित्र दर्शाए गए हैं। मंदिर की स्थापना रामेश्वरदास महाराज ने की थी। यह धाम बाबा रामेश्वरदास की तपोस्थली रहा है। इसके संचालन के लिए 1976 में एक ट्रस्ट का गठन किया गया था। रामेश्वरदास धाम के सम्पूर्ण मंदिर के निर्माण कार्य, मूर्तियों व भीत्ति चित्रों, शीशे में गीता व रामायण लेखन कार्य कारीगर गजानंद कुमावत खेतड़ी वाले के निर्देशन में किया।
बजरंग बली की 41 फीट की प्रतिमा
रामेश्वरदास धाम के मुख्यद्वार के सामने 41 फीट की विशालकाय बजरंग बली की प्रतिमा है। शिव मंदिर में एक पत्थर से बना 10 फीट का शिवलिंग है, जो खेतड़ी उपखंड में स्थित शिव मंदिरों में सर्वाधिक बडा है। रामेश्वरदास धाम में एक हाथी व एक नंदी की प्रतिमा की ऊंचाई लगभग 21 फीट है।
रामनवमी को भरता मेला
मंदिर पुजारी लक्ष्मण शास्त्री ने बताया यहां प्रतिवर्ष रामनवमी को मेला लगता है। मार्गशीर्ष बदी अष्टमी को बाबा रामेश्वर दास की पुण्यतिथि समारोह का आयोजन होता है। मंदिर में सम्पूर्ण वर्ष श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
उल्टे शब्दों में उकेरे गए हैं गीता के 18 अध्याय
मंदिर के गीता भवन में श्रीमद्भागवत गीता के 18 अध्याय शीशे पर उल्टे शब्दों में उकेरे गए हैं, जो बाहर से सीधे दिखाई देते हैं। इस कलाकृति को देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।