बालमीक पांडेय @ कटनी. बचपन वो उम्र होती है जब हाथों में किताबें होनी चाहिए, खेल होना चाहिए, लेकिन कुछ बेटियों के हाथों में समय से पहले चूडिय़ां थमा दी जाती हैं, हर साल तमाम कोशिशों के बावजूद कुछ परिवार बाल विवाह जैसे अपराध की ओर कदम बढ़ा देते हैं, ये सिर्फ एक शादी नहीं होती, बल्कि एक मासूम के सपनों की मौत है, ना उम्र होती है समझने की, ना कंधे होते हैं जिम्मदारियां उठाने के लिए, फिर भी समाज मजबूर करता है उन्हें जीवन की उस राह पर, जिसे वो समझ भी नहीं पातीं। बीते वर्षों में बाल विवाह रोके गए, लेकिन सवाल यही है कितनी बच्चियां अब भी छूट गईं, आज जरुरतम है पूरी तरह से इस कुरीति को खत्म करने की…। कहने को तो 21वीं सदी में जी रहे हैं, कानून और जागरूकता की बातें करते हैं, मगर हकीकत ये है कि जिले में अब भी बाल विवाह के मामले सामने आ रहे हैं। 30 अप्रेल एक ऐसा दिन है जो अबूझ मुहूर्त के अनुसार बड़ी संख्या में वैवाहिक कार्यक्रम होते हैं। अक्षय तृतीय विवाह के लिए अनुकूल माना जाता है। लोग बाल विवाह न करें, इसके लिए महिला बाल विकास विभाग, महिला सशक्तिकरण विभाग, जिला प्रशासन मुस्तैद है, लेकिन महिला बाल विकास विभाग की बात करें तो बीते चार वर्षों में 30 बाल विवाह रोके जा चुके हैं, लेकिन यह आंकड़ा समाज की गंभीर मानसिकता को दर्शाता है। कटनी जैसे जिले में बाल विवाह की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। ग्रामीण इलाकों में गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक दबाव जैसे कारणों से माता-पिता कम उम्र में बेटियों की शादी करने पर मजबूर हो जाते हैं। हालांकि पिछले एक दशक में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन अब भी गुपचुप तरीके से बाल विवाह करने के प्रयास होते हैं।
चार साल में यह रुके बाल विवाह वर्ष संख्या 2021-22 -06 2022-23 -09 2023-24 -08 2024-25 -07
खतरे में मासूम बचपन
जिम्मेदारी से निपटने के लिए बच्चों के माता-पिता कच्ची उम्र में उन्हें शादी के बंधन में बांधने को मजबूर कर देते हैं। मासूम बचपन को खतरे में डालने में नहीं हिचकिचा रहे। बाल विवाह रोकने के बावजूद मानसिकता लोगों नहीं बदल रही। हैरानी की बात तो यह है कि बालिका वधुओं की कई बार चीखें सुनने वाला कोई नहीं होता। जहां पर जागरुक लोग रहते हैं वे प्रशासन को जानकारी दे देते हैं, जिससे विवाह रुक जाते हैं। कई मामलों में आसानी से विवाह हो जा रहे हैं। जिले में बाल विवाह के 30 मामलों ने आंखें खोली है।
यह है विवाह की सही और कानूनी उम्र
महिला सशक्तिकरण विभाग के मनीष तिवारी के अनुसार भारतीय कानून के अनुसार विवाह के लिए लडक़ी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है, जबकि लडक़े की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है। इन उम्रों से पहले किया गया विवाह बाल विवाह की श्रेणी में आता है, जो पूरी तरह से अवैध है।
file photo
लडक़ी के लिए अभिषाप है बाल विवाह
महिला सशक्तिकरण अधिकारी वनश्री कुर्वेती के अनुसार लडक़ी का बाल विवाह होने पर शारीरिक स्वास्थ्य पर असर असर पड़ता है। कम उम्र में गर्भधारण से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। शादी के बाद शिक्षा अधूरी रह जाती है। पारिवारिक जिम्मेदारियों और कम उम्र में मातृत्व मानसिक दबाव बढ़ाते हैं। बाल वधुओं में घरेलू हिंसा की संभावना अधिक पाई जाती है।
वनश्री कुर्वेती ने कहा कि यदि बच्चों का बाल विवाह होता है तो आर्थिक जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं, अपरिपक्व उम्र में परिवार चलाने का बोझ रहता है। पढ़ाई बीच में छूट जाती है। जिम्मेदारियों का मानसिक असर, बेरोजगारी की मार होती है। कानूनन दोषी माना जाता है, सजा और जुर्माना भुगतना पड़ सकता है।
यह है कानून और सजा का प्रावधान
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के तहत बाल विवाह अवैध है। विवाह कराने वाले माता-पिता, रिश्तेदार, बाराती पुजारी, हलवाई, घोड़ी वाले, बैंडवाले, टेंट कारोबारी आदि को 2 साल की सजा या 1 लाख रुपए जुर्माना या दोनों होते हैं। विवाह को निष्प्रभावी घोषित किया जा सकता है। लडक़ी के 2 साल के अंदर विवाह रद्द करवाने का अधिकार है।
Wedding Season
एक्सपर्ट व्यू: बाल विवाह सामाजिक बीमारी
समाजशास्त्री हेमलता गर्ग कहा कहना है कि बाल विवाह केवल एक पारिवारिक निर्णय नहीं, बल्कि सामाजिक मानसिकता की विकृति है। जब तक समाज स्त्री को बोझ मानता रहेगा, तब तक यह कुप्रथा जीवित रहेगी। इसका असर पूरी पीढ़ी पर होता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आत्मनिर्भरता सब प्रभावित होते हैं। बाल विवाह की भयावहता केवल आंकड़ों से नहीं, उन मासूम चेहरों से झलकती है जिनका बचपन, शिक्षा और सपने छीन लिए जाते हैं। प्रशासन, समाज और परिवार—तीनों को मिलकर इस सामाजिक बुराई के खिलाफ खड़ा होना होगा। नहीं तो हर बचाई गई बेटी के पीछे कई ऐसी होंगी, जो बालिका वधु बनने को मजबूर कर दी जाएंगी।
शहर के मंगलनगर क्षेत्र में चौरसिया मैरिज गार्डन में हो रही एक नाबालिग बालिका की शादी को प्रशासन ने रुकवा दिया है। नाबालिग बालिका को बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत कराया गया। परिजनों को बालिका की आयु 18 वर्ष एवं लडक़े की आयु 21 वर्ष होने के पश्चात ही विवाह करने की समझाईश दी गई। चाईल्ड हेल्प लाईन कन्ट्रोल रूम भोपाल को किसी के द्वारा शिकायत की गई कि चौरसिया मैरिज गार्डन मंगलनगर में एक नाबालिग बालिका की शादी कराई जा रही है। जहां पर तत्काल इसकी सूचना बाल संरक्षण अधिकारी मनीष तिवारी को प्राप्त हुई। इसके बाद तिवारी द्वारा तत्काल पुलिस कन्ट्रोल रूम को जानकारी दी गई। पुलिस स्टॉफ एवं बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष योगेश सिंह बघेल के साथ विवाह आयोजन स्थल पर पहुंचे। दस्तावेतों की जांच कह। वधु की उम्र लगभग 15 वर्ष 6 माह है एवं वर की भी उम्र लगभग 20 वर्ष है। इसके पश्चात दोनो पक्षों के लोगो को समझाईश देते हुए रुकवाया गया।
जिला अधिकारी ने कही यह बात
नयन सिंह, जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला बाल विकास विभाग ने कहा कि बाल विवाह रोकने के लिए विभाग द्वारा हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। दोनों पक्षों को समझाइश देकर शादिया रुकवाई जा रही हैं। चार वर्षों में जिले में 30 बच्चियों को बाल विवाह से रोका गया है। अक्षय तृतीय पर जिलेभर में टीमें निगरानी रखेंगी। सभी एसडीएम की अध्यक्षता में जांच होगी। इसमें 7 सीडीपीओ की टीमें सक्रिय रहेंगीं।
Hindi News / Katni / बचपन पर शादी की जंजीरें: चार साल में 30 बाल विवाह रोके, यहां आज भी कुप्रथा कायम