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दुर्गा मंदिर और प्राचीन भग्नावशेष
मुख्य मंदिर के निकट एक अन्य मंदिर भी स्थित है, जहां मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा विराजमान है। स्थानीय लोग इसे मां शारदा मंदिर भी कहते हैं। इसका निर्माण पुराने मंदिरों के भग्नावशेषों से किया गया है। मंदिर परिसर में विभिन्न स्थानों पर प्राचीन मंदिरों के अवशेष और खंडित मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। दीवार पर विष्णु के नृसिंह अवतार की प्रतिमा अंकित है। मंदिर के एक स्तंभ पर कन्नौज के उमदेव नामक तीर्थयात्री का लेख लिखा हुआ है, जिसकी लिपि 8वीं शताब्दी की बताई जाती है।
रहस्यमयी पूजन की परंपरा
मां कंकाली मंदिर से जुड़े कई रहस्य भी हैं। लोगों का कहना है कि मां का पूजन सुबह 4 बजे स्वयं ही हो जाता है। गांव वालों के अनुसार, जब सुबह मंदिर के पट खुलते हैं, तो मां शारदा का श्रृंगार और पूजन पूर्ण अवस्था में मिलता है, लेकिन यह कौन करता है, इसका रहस्य आज तक अनसुलझा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने तिगंवा को पुरातात्विक महत्व के कारण संरक्षित घोषित किया है। यह मंदिर प्राचीन स्मारक और पुरातत्वीय स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया है।