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नरसिंहपुर

गन्ने की सूखी पत्तियों से बनेगी कंप्रेस्ड बायो गैस और बायो फर्टिलाइजर

जबलपुर में शुरू किए जा रहे एक स्टार्टअप के माध्यम से गन्ने की सूखी पत्तियों से सीबीजी बनाई जाएगी। इसके अतिरिक्त, सीबीजी निर्माण के बाद बचे अवशिष्ट पदार्थ से बायो फ र्टिलाइजर तैयार किया जाएगा। जिससे जैविक खेती को भी बढ़ावा मिलेगा। यह पहल न केवल पर्यावरण सुरक्षा में सहायक होगी, बल्कि किसानों के लिए आर्थिक अवसर भी प्रदान करेगी।

नरसिंहपुरMar 11, 2025 / 06:35 pm

brajesh tiwari

नरसिंहपुर. जिले में अब गन्ने की सूखी पत्तियों से सीबीजी कंप्रेस्ड बायो गैस और बायो फ र्टिलाइजर बनाने की पहल शुरू हुई है। इससे फसलों के अवशेष प्रबंधन का नया रास्ता खुल गया है। जिससे किसान अब गन्ने की सूखी पत्तियों के अलावा नरवाई और पराली जलाने की समस्या से मुक्ति पा सकेंगे और साथ ही भविष्य में अतिरिक्त आमदनी भी अर्जित कर सकेंगे। इससे खेतों में आग लगाने से पर्यावरण पर पडऩे वाले दुष्प्रभावों की भी रोकथाम हो सकेगी। जिससे पर्यावरण को भी फायदा पहुंचेगा।
जबलपुर में शुरू किए जा रहे एक स्टार्टअप के माध्यम से गन्ने की सूखी पत्तियों से सीबीजी बनाई जाएगी। इसके अतिरिक्त, सीबीजी निर्माण के बाद बचे अवशिष्ट पदार्थ से बायो फ र्टिलाइजर तैयार किया जाएगा। जिससे जैविक खेती को भी बढ़ावा मिलेगा। यह पहल न केवल पर्यावरण सुरक्षा में सहायक होगी, बल्कि किसानों के लिए आर्थिक अवसर भी प्रदान करेगी।
गुंदरई निवासी किसान देवेंद्र पटेल ने खेतों से निशुल्क रूप से गन्ने की सूखी पत्तियों को एकत्रित करने का कार्य शुरू किया है। अब तक वे अकेले ही 600 टन पत्तियां जबलपुर पहुंचा चुके हैं। देवेंद्र पटेल बताते हैं कि करेली ब्लॉक में भी इसी तरह से पत्तियों का संग्रहण किया जा रहा है और अब तक जिले से 1200 टन से अधिक फसल अवशेषों का संग्रहण किया जा चुका है। इस प्रक्रिया से किसानों को खेतों में पराली जलाने की समस्या से मुक्ति मिलती है और उनके खेत भी साफ रहते हैं।
जैविक खेती को मिलेगा प्रोत्साहन
कृषि उपसंचालक उमेश कटहरे के अनुसार खेतों की पराली और फसलों के अवशेषों के साथ गन्ने की सूखी पत्तियों से सीबीजी निर्माण पराली प्रबंधन का बेहतर माध्यम हो सकता है। जो किसानों को आमदनी का एक नया स्रोत बनाने के साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी सहयोगी होगा। सीबीजी के अलावा भी फसल अवशेषों से नाडेप और वर्मी कम्पोस्ट खाद भी बनाए जा सकते हैं। इससे जैविक खेती को प्रोत्साहन मिलेगा।
अर्थ व्यवस्था को गति देने में सहायक
जिले के प्रमुख अर्थशास्त्री डा रामकुमार चौकसे कहते हैं कि गन्ने के सहउत्पाद के रूप में पत्तियों से सीबीजी बनाने की पहल अच्छी है। जब किसानों को इसका मूल्य प्राप्त होगा तो उनक ी आमदनी में वृद्धि होगी। इस क्षेत्र में नए स्टार्टअप आने से इससे ईको फ्रेंडली डिस्पोजल इकाईयों की स्थापना की राह भी खुलेगी। जो जिले की अर्थ व्यवस्था को गति देेनें में सहायक बनेंगे।

पर्यावरण को होगा लाभ
गन्ने की पत्तियों से सीबीजी बनाने से होने वाले पर्यावरणीय फायदों को लेकर कृषि वैज्ञानिक डा आशुतोष शर्मा का कहना है कि पत्तियां जलाने से खेत की मिटटी की सतह काफी गर्म हो जाती है। इससे वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ता है। जिससे वातावरण और मृदा स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि फ सल अवशेष जलाने से खेत में लाभकारी सूक्ष्मजीव और केंचुए नष्ट हो जाते हैं, जिससे मृदा की उर्वरता कम होती है। यदि गन्ने की पूरे जिले में इस प्रक्रिया को अपनाया जाता है तो जिले भर के खेतों की मिटटी का स्वास्थ्य सुधर जाएगा। इससे मिटटी का क्षरण भी रुकेगा और मिटटी में पानी को संरक्षित करने की क्षमता
भी बढ़ेगी।
यह एक अच्छी और उम्मीद भरी शुरूआत है। यह भविष्य में न केवल किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक होगी, बल्कि पर्यावरण सुरक्षा और मृदा संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। जिले में इस अभिनव प्रयोग से अन्य किसानों को भी प्रेरणा मिलेगी और फ सल अवशेष प्रबंधन के बेहतर विकल्पों को अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ेगी।
डॉ. अभिषेक दुबे सहायक संचालक गन्ना

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