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इंसानी एल्गोरिदम को स्क्रीन की कैद से निकाल यथार्थ से जोड़ना होगा

मन को प्रशिक्षित करेंगे तभी श्रेय (सत्य) के करीब जा सकेंगे और प्रेय (प्रिय लगने वाले झूठ) से दूर रहेंगे

जयपुरJan 02, 2025 / 06:16 pm

Nitin Kumar

आचार्य प्रशांत
नेशनल बेस्टसेलिंग लेखक, वेदांत मर्मज्ञ
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जब हम संभावनाओं, खतरों और चुनौतियों की बात करते हैं, तो सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि वैश्विक और व्यापक स्तर पर क्या चल रहा है। फिर समझना होगा कि उसका संबंध व्यक्तिगत स्तर से है या नहीं। 2025 एक चुनौतीपूर्ण साल है, जो अब दस्तक दे रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के कम ही ऐसे साल रहे हैं, जब दुनिया में एक नहीं बल्कि दो बड़ी लड़ाइयां चल रही हों, और तीसरी जगह पर तनाव इतना हो कि लड़ाई कभी भी शुरू हो सकती हो।
रूस-यूक्रेन और मिडल ईस्ट में जो चल रहा है, वह एक बड़ी चुनौती है। इन युद्धों का अंत केवल समझ और संवाद से हो सकता है। अपने भीतर के अहंकार और स्वार्थ को समाप्त करने से ही यह संभव है। पर ये दोनों युद्ध रुक भी जाएं, तो भी इनसे बड़ा खतरा क्लाइमेट चेंज है। 2024 अब तक का सबसे गर्म साल रहा है। दुनिया भर में एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स बढ़े हैं, और यह स्थिति हर साल और भयावह होती जाएगी। 2025, 2026 और 2027 में तापमान और अधिक बढ़ेगा। वैज्ञानिक स्पष्ट कह रहे हैं कि फीडबैक साइकल्स एक बार शुरू हो जाएं, तो उन्हें रोका नहीं जा सकता। इसका मतलब है कि हम प्रकृति के बिंदु से बहुत दूर निकल चुके हैं। ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज केवल पर्यावरणीय मुद्दे नहीं हैं, ये हमारी चेतना के अभाव का प्रमाण हैं। हमें व्यक्तिगत स्तर पर संसाधनों के उपयोग को सीमित करना होगा और बड़े स्तर पर सरकारों और उद्योगों को जवाबदेह बनाना होगा।
तीसरा खतरा सोशल मीडिया है। सोशल मीडिया ने इंसान के मन के साथ वह कर दिया है, जो उसके इतिहास में कभी नहीं हुआ। इंसान ठीक से सुनने-समझने और ध्यान देने की क्षमता खो रहा है। सोशल मीडिया में वह क्षमता है कि यह इंसान को ‘साइलो’ (वस्तु भंडारण के काम आने वाली टंकीनुमा संरचना) में कैद कर देता है। यह मानसिक विकारों और अकेलेपन को बढ़ावा देता है। सोशल मीडिया के पीछे का एल्गोरिदम इंसान की कामनाओं को पकड़ता है और उसे वही चीजें दिखाता है, जो उसे प्रिय लगती हैं। इसमें सच्चाई नहीं होती, केवल झूठ और भ्रम होता है। अब एआइ ने इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया है। स्क्रीन इंसान की कामनाओं को पूरा कर रही है और उसे समाज, परिवार, और यथार्थ से दूर कर रही है। यह एक ऐसा मीठा जहर है, जो इंसान को गुलाम बना रहा है। यह प्रक्रिया का उद्देश्य भी पैसा ही है, जिसके लिए औपनिवेशिक ताकतें देशों को गुलाम बनाती थीं।
सोशल मीडिया ने मानव चेतना को जकड़ लिया है। यह हमें श्रेय (सत्य) से दूर और प्रेय (प्रिय लगने वाले झूठ) के करीब ले जा रहा है। इसका सबसे बड़ा समाधान यह है कि हम अपने मन को प्रशिक्षित करें, ताकि यह सत्य को स्वीकार सके और झूठ से बच सके। सोशल मीडिया के एल्गोरिदम को रेगुलेटरी बॉडी के दायरे में लाना जरूरी है। लेकिन इससे भी जरूरी है कि हम स्क्रीन पर बिताए समय को कम करें, परिवार और समाज के साथ समय बिताएं, और यथार्थ के साथ जुड़ें। हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां चुनौती केवल बाहरी संकटों की नहीं, बल्कि हमारी चेतना की है। क्लाइमेट चेंज, युद्ध, और सोशल मीडिया जैसे खतरों का समाधान तभी संभव है, जब हम अपने भीतर की समस्याओं को हल करें। हमें यह समझना होगा कि हमारे भीतर का स्वार्थ और अज्ञानता ही इन संकटों की जड़ है। 2025 केवल चेतावनी नहीं, बल्कि बदलाव का आह्वान है। यह हम पर निर्भर है कि हम इसे कैसे अपनाते हैं।

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