सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि राजस्थान में हर साल करीब 25 हजार सडक़ दुर्घटनाएं होती हैं, इनमें 12 हजार से अधिक लोगों की जान चली जाती है। इनमें से बड़ी संख्या में दुर्घटनाएं उन वाहनों की वजह से होती हैं जो तकनीकी रूप से सडक़ पर चलने योग्य नहीं होते, फिर भी बेधडक़ दौड़ रहे हैं। हाल ही में जयपुर के दो फिटनेस सेंटरों की जांच में खुलासा हुआ कि वहां कैमरे बंद थे, मैनुअल फीडिंग हो रही थी और अनफिट वाहनों को आराम से पास किया जा रहा था। अगर प्रदेश की राजधानी में सरकार की नाक के नीचे ये हाल हैं तो समझ सकते हैं कि दूरदराज के क्षेत्रों में क्या स्थिति होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। निश्चित ही वहां भी फिटनेस सेंटर पर जांच उपकरण नदारद होंगे या खराब पड़े होंगे। इसके बावजूद वाहन मालिकों को बिना टेस्टिंग के प्रमाण पत्र दिए जा रहे होंगे। क्या यह जानबूझकर मौत को निमंत्रण देना नहीं है?
सवाल यह भी उठता है कि क्या लोगों की जान इतनी सस्ती हो गई है कि कुछ भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी रिश्वत के बदले उन्हें खतरे में डालने को तैयार हैं? प्रदेश की खस्ताहाल सडक़ों और यातायात नियमों की पालना नहीं होने से दुर्घटनाओं की संख्या पहले से ही अधिक है। ऐसे में अनफिट वाहनों को सडक़ पर उतारने की अनुमति तो लापरवाही की पराकाष्ठा ही होगी। वाहन फिटनेस सेंटरों की नियमित निगरानी होनी चाहिए। फिटनेस जांच प्रक्रिया को अनिवार्य रूप से डिजिटल कर देना चाहिए। समय रहते रोक नहीं लगाई गई, तो सडक़ सुरक्षा के लिए घातक साबित होगा। -रमेश शर्मा