ये है मामला
राज्य सरकार ने अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों के सरकारी सेवा में समायोजन के लिए 2010 में राजस्थान स्वेच्छया ग्रामीण शिक्षा अधिनियम बनाया था। अधिनियम के तहत अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के करीब आठ हजार कर्मचारियों का 2011 में सरकारी सेवा में समायोजन किया था। अधिनियम में प्रावधान किया गया कि समायोजित कर्मचारियों के अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के कार्यकाल की गणना नहीं की जाएगी। इधर, पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू कर सरकार ने इसका लाभ कम से कम दस वर्ष की सेवा अवधि पूरा करने वाले कर्मचारियों को ही देना तय किया है। ऐसे में 2021 से पहले सेवानिवृत हुए समायोजित कर्मचारियों का 10 साल का सेवाकाल पूरा नहीं होने पर उन्हें पुरानी पेंशन योजना का लाभ नहीं दिया गया। लिहाजा ऐसे हजारों शिक्षक सामाजिक सुरक्षा के संकट से जूझ रहे हैं।
हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट भी पक्ष में
सेवाकाल में अनुदानित स्कूलों का कार्यकाल भी शामिल कर पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने की मांग को लेकर समायोजित शिक्षकों ने पहले हाइकोर्ट में लड़ाई लड़ी। इस पर जोधपुर पीठ ने 1 फरवरी 2018 को शिक्षकों की प्रथम नियुक्ति तिथि से राजस्थान सिविल पेंशन नियम 1996 के तहत पुरानी पेंशन देने के निर्देश सरकार को दिए। इसके विरुद्ध सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की तो उसे निरस्त करते हुए कोर्ट ने 13 सितंबर 2018 को हाइकोर्ट के निर्णय से सहमति जताई। इस पर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ फिर पुनर्विचार याचिका जोधपुर हाइकोर्ट में दायर कर दी। इसके बाद से शिक्षकों की पेंशन का मामला अधर में अटका हुआ है।
कर्मचारी दे देंगे तीन साल की पेंशन राशि
पुरानी पेंशन योजना के लिए हाइकोर्ट के फैसले के अनुसार समायोजित कर्मचारी पीएफ की राशि छह फीसदी ब्याज सहित देने को तैयार है। उनका कहना है कि इस राशि में एनपीएस फंड में जमा राशि का 50 फीसदी मिलने पर राज्य सरकार के पास इतनी राशि हो जाएगी कि वह कर्मचारियों की करीब दो से तीन साल की पेंशन तो उस राशि से ही दे सकेगी।वरिष्ठता व ग्रेच्युटी की भी समस्याराजस्थान ग्रामीण स्वेच्छया अधिनियम के चलते सभी 8 हजार शिक्षक वरिष्ठता के लाभ से भी वंचित हैं। अधिनियम में समायोजित शिक्षकों को भविष्य में किसी भी पदोन्नति का लाभ नहीं देने का प्रावधान भी रखा गया था। इसके चलते इन शिक्षकों की पदोन्नति नहीं हो रही और अन्य जूनियर शिक्षक भी पदोन्नति पाकर इनसे सीनियर हो गए हैं।
इनका कहना है:—
पेंशन के इंतजार में करीब 300 सेवानिवृत कर्मचारियों की मौत हो चुकी है। सैकड़ों सेवानिवृत कर्मचारी ऐसे हैं जो गंभीर बीमारियों के बीच आर्थिक अभाव से जूझ रहे हैं। पेंशन नहीं मिलने पर कर्मचारी सरकार से इच्छा मृत्यु की अनुमति की मांग पर भी विचार कर रहे हैं। विजय उपाध्याय, मुख्य संचालक, राजस्थान सेवानिवृत समायोजित शिक्षक-कर्मचारी मंच।