दस साल पहले की थी घोषणा तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने करीब दस साल पहले आसींद क्षेत्र के मोड का निंबाहेड़ा में सिरेमिक पार्क की घोषणा की थी। वह भी केवल घोषणा बनकर रह गई। सरकार ने सिरेमिक पार्क के लिए 510 बीघा जमीन आरक्षित की थी। लेकिन वर्षों बाद भी धरातल पर केवल बोर्ड लगाने के सिवाय कोई काम नहीं हुआ।
600 करोड़ का निवेश अटका यह जमीन रीको के पास है तथा वहा रीको इंडस्ट्रियल एरिया का बोर्ड लगा हुआ है। पूर्व में आसींद के लाछुड़ा निवासी उद्योगपति राजेंद्र भालावत ,बीसी भालावत ने मोड़ का निंबाहेड़ा में जमीन के लिए सरकार को आवेदन किया था, लेकिन जमीन नहीं मिलने से करीब 600 करोड निवेश भी अटक गया।
सोनियाणा क्षेत्र के उद्यमी परेशान सोनियाणा में उद्योग लगाने वाले उद्यमी स्थानीय राजनीति के चलते परेशान है। यहां उद्योग लगाने तथा भूमि पूजन के दौरान ही एक उद्यमी के साथ झगड़ा होने पर उद्योग लगानी की योजना को निरस्त कर दिया। हालात यह है कि ग्लास उद्योग भी केवल अपने स्तर पर काम कर रहा है। सोनियाणा में पिछले दस साल से भूखंड नहीं मिलने पर रीको के भी इसे सिरेमिक पार्क घोषित करवा दिया।
जानिए, सिरेमिक जोन फेल्सपार और क्वार्ट्ज पत्थर को पीसकर बारीक पाउडर से टाइल्स एवं अन्य सामग्री बनाई जाती है। वर्तमान में गुजरात के मोरवी में यह सिरेमिक जोन है। गुजरात में सारा कच्चा माल भीलवाड़ा से जाता है। भीलवाड़ा जिले में पत्थर पीसने की 300, ब्यावर में 2700, उदयपुर, राजसंमंद, बांसवाड़ा समेत अन्य जिलो में लगभग 6 हजार ग्राइंडिंग यूनिट लगी हुई है। लेकिन आधारभूत सुविधा नहीं मिलने से यहां कोई सिरेमिक इंडस्ट्री नहीं आ पा रही है। उद्यमियों ने रींगस में प्लांट लगाया, लेकिन गैस नहीं होने से कोयला 10 हजार रुपए टन परिवहन खर्च समेत पड़ रहा है। ऐसे में उद्योग चलाना भी मुश्किल हो रहा है।
ग्राइंडिंग इकाइयों को बचाना मुश्किल केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर बैराइट्स, क्वार्ट्ज-फेल्सपार व अभ्रक को अप्रधान से प्रधान खनिज में शामिल कर लिया है। इससे प्रदेश की सभी खदाने अब केंद्र के अधीन हो गई। इससे प्रदेश में चल रही 6 हजार ग्राइंडिंग इकाइयों को बचना मुश्किल हो गया है। हालांकि इन इकाईयों को बचाने के लिए पहले से ही उद्यमी संघर्ष कर रहे थे अब स्थिति और विकट होगी। क्वार्ट्ज-फेल्सपार का कच्चा माल गुजरात के मोरवी जा रहा है। इसे रोकने के लिए उद्यमी रॉयल्टी दर बढ़ाने की मांग कर रहे थे।
आशीषपाल पदावत, अध्यक्ष लद्यु उद्योग संघ ब्यावर अब सिरेमिक जोन मुश्किल बैराइट्स, क्वार्ट्ज-फेल्सपार व अभ्रक को प्रधान खनिज में शामिल करने से अब चित्तौड़गढ़ के सोनियाणा में सिरेमिक जोन बनना मुश्किल है। क्योंकि इसके लिए गैस की महत्ती आवश्यता है। यह आसानी से नहीं मिल रही है। कोयले पर परिवहन खर्च इतना ज्यादा है कि 2300 रुपए प्रति टन का भाड़ा लग रहा है। जबकि कोयला 7500 हजार टन के भाव से मिल रहा है।
दिनेश कुमावत, मिनरल्स उद्यमी उदयपुर