किलिमंजारो पर तिरंगा लहराकर शहर लौटी पर्वतारोही निशा ने पत्रिका के अभियान को सराहा, बोलीं- अब महिलाओं को खुद के लिए लड़ना सीखना होगा..
Women safety campaign: निशा कहती हैं कि हम महिलाओं के हित में कितने ही कानून क्यों न बना लें, लेकिन संस्कारहीन दूषित मानसिकता के लोगों से महिलाएं हर जगह पीड़ि़त होती रहेंगी।
Women safety campaign: ढालसिंह पारधी/महिलाएं किसी से कम नहीं। महिलाओं ने आसमान को छूने से लेकर पर्वत की ऊंचाई और समुद्र की गहराई को नापने तक का काम किया है। औरत लोहे की तरह मजबूत होती है। लेकिन संस्कार, समाज, पारंपरिक धारणाएं और बदलते परिवेश में महिला उत्पीड़न, हिंसा, असुरक्षा के मामले चौंकाते हैं।
मेरा अनुभव है कि जब तक महिला खुद को कमजोर न मान ले, तब तक वह सुरक्षित है। अब महिलाओं को खुद के लिए लड़ना सीखना होगा। महिलाओं का सम्मान घर से शुरू होना चाहिए। यह कहना है अफ्रीका महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो पर पत्रिका का बैनर और तिरंगा लहराकर सीधे पत्रिका दफ्तर पहुंची शहर की युवा पर्वतारोही निशा यादव का।
Women safety campaign: महिलाएं करती हैं इन समस्याओं का सामना
पत्रिका के महिला सुरक्षा अभियान की सराहना करते हुए निशा ने कहा कि यह सही है कि स्कूल-कॉलेज, दफ्तर जाना हो, बाजार में खरीदारी करनी हो या घूमने जाना हो, महिलाओं को घूरती निगाहें, पुरुषों के जबरदस्ती करीब आने की कोशिश, ईव टीजिंग जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। (महिला सुरक्षा अभियान) लेकिन अगर इन सब इग्नोर करते हुए खुद कमजोर नहीं पड़ेगी तो किसी की हिम्मत नहीं कि वह हद पार कर दें। और यदि कोई हद पार करे तो उसके खिलाफ आवाज उठाना समय की मांग है।
निशा का कहना है कि महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए कई कानून बने हुए हैं, लेकिन जब तक त्वरित कार्रवाई नहीं होगी और दोषी को शीघ्रता से दंडित नहीं किया जाएगा, हालात बदलने वाले नहीं हैं। खासतौर पर पुरुषों की मानसिकता बदलनी आवश्यक है। महिला को देवी मानने वाले समाज में उनका उत्पीडऩ शर्म की बात है। दरअसल, पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण हम नारी सम्मान को भूल गए हैं। हमें अपनी-अपनी संस्कृति की ओर लौटना होगा और समझना होगा की नारी समाज की जननी है।
बचपन से ही संस्कारों पर जोर
Women safety campaign: निशा का कहना है कि कई देशों में महिलाएं रात में घूमने में भी खुद को सुरक्षित महसूस करती है। हमें हमारे समाज की सोच को परिवर्तित करने के लिए जितने प्रयास हो सकें, उतने करने होंगे। क्योंकि अगर महिलाओं के साथ अपने घर में ही हिंसा हो रही हो तो उनको अपने परिवार की इज्जत का हवाला देकर चुप करा दिया जाता है। हम महिलाओं के हित में कितने ही कानून क्यों न बना लें, लेकिन संस्कारहीन दूषित मानसिकता के लोगों से महिलाएं हर जगह पीड़ि़त होती रहेंगी। महिलाएं तभी सुरक्षित रहेंगी, जब बचपन से ही संस्कारों पर बल दिया जाए।
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