इसके पीछे एक Fascinating प्राकृतिक यात्रा है, एक खास पौधे की कहानी जिसके बीजों से यह शुद्ध और हर्बल सिंदूर (Sindoor) बनता है। इस प्राकृतिक सिंदूर में कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. अर्जुन राज ने प्राकृतिक सिंदूर (Sindoor) के कुछ संभावित स्वास्थ्य लाभ बताए हैं। आइए, इस खास पौधे और इससे बनने वाले शुद्ध सिंदूर की कहानी और इसके फायदों के बारे में विस्तार से जानें।
कुमकुम ट्री : सिंदूर का प्राकृतिक स्रोत (Benefits of Sindoor Plants)
सिंदूर का यह अनोखा पौधा जिसे अंग्रेज़ी में Kumkum Tree या Lipstick Tree कहा जाता है, वैज्ञानिक नाम Bixa Orellana से जाना जाता है। यह पौधा मुख्यतः दक्षिण अमेरिका, भारत के महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश के कुछ विशेष क्षेत्रों में पाया जाता है। यह भी पढ़ें :
Daily Habits Bad for Heart : हार्ट को बचाना है तो आज से ही छोड़ दें ये 7 आदतें Sindoor Benefits : कैसे दिखता है यह पौधा?
20-25 फीट तक ऊंचा यह पेड़ नींबू के पेड़ जैसा नजर आता है। इसके फल पहले हरे और फिर गहराते हुए लाल रंग के हो जाते हैं। इन्हीं फलों के भीतर छोटे-छोटे बीज होते हैं जिनसे प्राकृतिक लाल रंग यानी सिंदूर प्राप्त होता है।
सिंदूर बनता कैसे है? (How is vermillion made?)
इस पेड़ पर गुच्छों में फल लगते हैं। शुरुआत में ये फल हरे होते हैं, फिर लाल हो जाते हैं। इन लाल फलों के अंदर छोटे-छोटे दाने होते हैं। इन्हीं दानों को पीसकर सिंदूर बनाया जाता है। खास बात यह है कि अगर इसे सिर्फ इन दानों से बनाया जाए तो यह एकदम नैचुरल और शुद्ध होता है। इसमें कोई मिलावट नहीं होती और इसीलिए इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं माना जाता।
एक पेड़ से एक बार में करीब एक से डेढ़ किलो तक सिंदूर का फल मिल सकता है। यह थोड़ा महंगा होता है, करीब ₹400 किलो से ज़्यादा।
हर्बल Sindoor से लेकर लिपस्टिक तक का सफर
इन बीजों से निकाला गया लाल रंग पूरी तरह से प्राकृतिक होता है। यह न सिर्फ मांग भरने के लिए उपयोगी है बल्कि इससे हाई क्वालिटी हर्बल लिपस्टिक, हेयर डाई, नेल पॉलिश और यहां तक कि खाद्य रंग भी तैयार किए जाते हैं।
चिकित्सा क्षेत्र में भी है इसका उपयोग
African Journal of Biomedical Research के अनुसार, इस पौधे में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण मौजूद होते हैं। इसके बीजों से निकला Bixin नामक तत्व औषधीय और खाद्य रंगों में बेहद उपयोगी है। दस्त, बुखार और त्वचा संक्रमण जैसी बीमारियों में इसके पत्ते और बीज उपयोगी माने जाते हैं। यह भी पढ़ें :
Daytime Napping in Summer : गर्मियों में दिन में सोना फायदेमंद है या नहीं, जानिए क्या कहता है आयुर्वेद शुद्ध सिंदूर के फायदे (Benefits of Sindoor)
यह जो नैचुरल सिंदूर है, इसके कुछ फायदे बताए गए हैं, हालाँकि इन पर और ज़्यादा रिसर्च की ज़रूरत है:
आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. अर्जुन राज ने बताया कि सिंदूर या कमीला का पौधा भी कहते है, इसके कई हिस्से हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद बताए गए हैं। इसके बीज, पत्ते, फल और छाल को कई बीमारियों में दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, जैसे:
चमड़ी की दिक्कतें: इसकी मदद से कोढ़, झाइयाँ, फुंसियाँ, खुजली, दाद जैसी चमड़ी की बीमारियाँ ठीक करने में फायदा मिल सकता है। चमड़ी के इन्फेक्शन और घावों पर इसका लेप लगाते हैं। घाव और जले हुए हिस्सों पर इसके फल के रेशों को नारियल तेल में मिलाकर लगाने से आराम मिलता है। इसका तेल पुराने घावों को साफ करने में भी काम आता है।
पेट और पाचन: पेट से जुड़ी दिक्कतें जैसे कब्ज, गैस, पेट के कीड़े (टेपवर्म), अल्सर, दस्त और पेट की दूसरी बीमारियों में इसके बीज, पत्ते या छाल उपयोगी हैं। यह पेट साफ करने में भी मदद करता है। अंदरूनी चोट या ब्लीडिंग में भी इसका उपयोग बताया गया है।
साँस और गला: खाँसी, जुकाम (फ्लू), ब्रोंकाइटिस (साँस की नली की सूजन), गले की तकलीफ़ों और टीबी (तपेदिक) जैसी फेफड़ों और गले की बीमारियों में भी इसके पत्तों और फूलों का रस या अर्क फायदेमंद बताया गया है।
अन्य बीमारियाँ: गुर्दे की पथरी, प्लीहा (spleen) बढ़ने, और आँखों की समस्याओं में भी यह उपयोगी है। टाइफाइड और दिमागी बुखार (मेनिनजाइटिस) के इलाज में भी इसकी छाल काम आती है। पारंपरिक तौर पर रेबीज में भी इसका इस्तेमाल बताया गया है। इसके पत्तों और फूलों के अर्क में दर्द कम करने वाले गुण भी होते हैं।
Sindoor Benefits : क्या इसे घर पर उगाया जा सकता है?
इस पौधे को उगाने के दो पारंपरिक तरीके हैं – बीज बोकर या कलम से। लेकिन ध्यान रहे, यह पौधा विशेष जलवायु की मांग करता है। न ज्यादा खाद, न ज्यादा पानी – संतुलन बेहद जरूरी है। घर में इसे उगाना मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं। यह भी पढ़ें :
Daily Habits Bad for Liver : लिवर बचाना है तो छोड़ दें ये 5 आदतें और चीजें कमाई का भी साधन
एक पौधे से एक बार में करीब 1 से 1.5 किलो तक बीज मिलते हैं, जिनकी कीमत बाज़ार में ₹500 प्रति किलो से भी अधिक होती है। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में यह पौधा आजीविका का भी साधन बनता जा रहा है।
प्राकृतिक सौंदर्य की ओर लौटता समाज
आज जब बाजार रसायनों से भर चुका है, ऐसे में हर्बल सिंदूर और उसके स्रोत के रूप में कुमकुम ट्री की मांग तेजी से बढ़ रही है। यह केवल एक श्रृंगार का साधन नहीं, बल्कि भारतीय पारंपरिक ज्ञान और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक भी बनता जा रहा है।