जयपुर। हर धर्म सप्रदाय में ब्रह्माण्ड की व्याया है। ब्रह्मविवर्त पुस्तक में सृष्टि का विस्तार कैसे होता है, यह समझाया गया है। पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की पुस्तक ब्रह्मविवर्त पर चर्चा में विशेषज्ञों ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि ब्रह्मविवर्त ग्रंथ व्यक्ति को स्वयं को सहजता से समझने में मदद करता है।
राजस्थान पत्रिका की ओर से जवाहर कला केन्द्र में आयोजित पुस्तक मेले में पुस्तक ब्रह्मविवर्त पर गुरुवार को चर्चा की गई। इस अवसर पर पुस्तक के लेखक और पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी तथा विद्वतजन और युवा अध्येता मौजूद रहे। जगदगुरू रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद एवं पोरोहित्य विभाग के आचार्य डॉ. शभू कुमार झा ने कहा, पुस्तक समझाती है कि सृष्टि की उत्पत्ति का आधार एक ही ब्रह्म है और सृष्टि उसी का रूपान्तरण है। जड़ और चेतन समस्त चराचर में वह विद्यमान है।
उन्होंने कहा कि शिरोभाग विचलित होता है तो पूरा शरीर विचलित हो जाता है। शोरगुल करके अंतरिक्ष के साथ हिंसा करते हैं। सांयदर्शन कहता है, जो अपने अति समीप है उसे भी हम देख नहीं पाते हैं। आत्मा चेतन में होती है, परन्तु सत्य यह है कि अचेतन में भी आत्मा है। अणुव्रत विश्वभारती के पूर्व अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सोहनलाल गांधी ने कहा कि अन्य जगह कहीं पुनर्जन्म का सिद्धान्त नहीं है और कहीं उस परम तत्व की चर्चा नहीं है, जिसकी चर्चा वेद निर्विशेष के रूप करते हैं।
ब्रह्मविवर्त में एक सत्ता की बात कही है। वेद विज्ञान की परिकल्पना वैज्ञानिक है और इसमें किसी धर्म का खंडन नहीं किया है। वेद विज्ञान अध्ययन एवं शोध संस्थान की प्रतिनिधि डॉ. श्वेता तिवारी ने कहा कि ब्रह्म शब्द का अर्थ है बृहंगण अर्थात फैलते जाना, यही कामना सृष्टि के विस्तार का आधार है। यह संसार, जिसके आधार पर सृजित हुआ है उसी में यह लीन भी होता है। उन्होंने पुस्तक में वर्णित ब्रह्म के चार पाद और त्रि-पुरुष अव्यय अक्षर और क्षर का विस्तार क्रम बताते हुए सृष्टि रचना की वैज्ञानिकता का उल्लेख किया। श्रोताओं की जिज्ञासाओं के जवाब भी दिए गए। संवाद का समन्वय सुकुमार वर्मा ने किया।