scriptग्लेशियर के पिघलने-टूटने के गंभीर दुष्प्रभाव | Serious side effects of melting and breaking of glaciers | Patrika News
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ग्लेशियर के पिघलने-टूटने के गंभीर दुष्प्रभाव

डॉ. विवेक एस. अग्रवाल, पर्यावरण संरक्षण विषयों के जानकार

जयपुरFeb 21, 2025 / 10:45 pm

Sanjeev Mathur

हाल ही पर्यावरण की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण घटना की खबर आई कि विश्व का सबसे बड़ा हिमखंड यानी ग्लेशियर पिघलकर टूटने लगा है और समुद्र में बहने जा रहा है। यह कोई सामान्य घटना नहीं है क्योंकि हिमखंड के पिघलने के साथ जलवायु परिवर्तन के साक्षात लक्षण तो प्रकट होते ही हैं, भविष्य की गंभीर आशंकाएं भी दिखती हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्ताव के जरिए वर्ष 2022 में निर्णय लिया गया कि वर्ष 2025 पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर बचाव वर्ष के रूप में साधा जाएगा। संयुक्त राष्ट्र का यह प्रस्ताव अपने आप में द्योतक है कि हिमखंड हमारे लिए कितने महत्त्वपूर्ण हैं और उनका अनावश्यक रूप से पिघलकर टूटना मानव सृष्टि के लिए त्रासदी भी साबित हो सकता है। इनके टूटने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के लिए तापमान को सीमित करने के लिए साधे गए लक्ष्य और उस बाबत किए जा रहे प्रयास और जटिल हो जाते हैं। हिमखंड तापमान एवं वातावरण में संतुलन कायम करने में महती भूमिका अदा करते हैं। ऐसे में उनका पिघलना असंतुलन को जन्म देता है। दुनिया के सबसे बड़े हिमखंड ‘ए 23 ए’ में अब और टूट होने लगी है। हाल ही प्राप्त सैटेलाइट चित्रों में हिमखंड का एक बड़ा हिस्सा लगभग 80 वर्ग किलोमीटर आकार का टूटकर अलग हुआ दिखा है। इससे यह भी आशंका होने लगी है कि कहीं पूरा का पूरा हिमखंड ही टूटकर प्रवाह में नहीं आ जाए। इसके आकार को आसानी से समझने के लिए यह पेरिस के एफिल टॉवर से लगभग सौ लाख गुना भारी है यानी इसका वजन लगभग एक ट्रिलियन टन है। यह हिमखंड दुनिया का सबसे बड़ा हिमखंड माना जाता है और विशेष चिंता यह भी है कि जब यह दक्षिण जॉर्जिया द्वीप के पास पहुंचेगा तो समुद्री प्राणी भी आहत होंगे और आशंकाएं फिर किसी टाइटैनिक जहाज जैसे हादसे की प्रबल हो जाती है।
जैविक सृष्टि एवं वातावरण संतुलन की दृष्टि से ग्लेशियर का होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान में पृथ्वी के लगभग 10 प्रतिशत भूभाग पर ग्लेशियर विद्यमान हैं। ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के अतिरिक्त अन्य सभी महाद्वीपों में कम और अधिक ग्लेशियर पाए जाते हैं। पूर्वी काराकोरम शृंखला में स्थित सियाचिन भारत का 75 किलोमीटर लंबा सबसे बड़ा ग्लेशियर है, जो तजाकिस्तान के फेडचेंको के बाद विश्व का सबसे विशाल अधु्रवीय ग्लेशियर है। हालांकि ग्लेशियर की व्यापकता के बारे में मात्र अनुमान ही है, लेकिन प्रचलित गति से इनके पिघलने पर यह निश्चित है कि समुद्री जलस्तर लगभग 70 मीटर तक बढ़ जाएगा और परिणामस्वरूप तबाही का मंजर बन जाएगा। ग्लेशियर पर स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के साथ तापमान को नियंत्रित तथा अनेकानेक जैविक विविधताओं को विद्यमान रखने का दायित्व भी है। अनुमान यह है कि यदि तापमान वृद्धि को लक्षित डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर नियंत्रित भी कर दिया जाए तो इस शताब्दी के अंत तक ग्रीनलैंड एवं अंटार्कटिका को छोड़कर संपूर्ण पृथ्वी से ग्लेशियर लुप्त हो जाएंगे। पर्यटन के लिए मशहूर ऐल्प्स के हिमशिखर तो सन 2050 तक ही आधे के करीब रह जाएंगे। निरंतर पिघलने और टूटने को भविष्य की आशंकाओं के मद्देनजर नियंत्रित करना एवं बचाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, अन्यथा इस गति के चलते बंदरगाह एवं समुद्र के तटीय क्षेत्रों में बस रही आबादी पर भी प्रत्यक्ष तौर पर आघात पहुंचेगा। समुद्र में उफान और तूफान के साथ प्राकृतिक आपदाएं भी संसाधनों को नेस्तनाबूत कर देंगी। पिघलने के साथ-साथ तापमान में भी अनपेक्षित वृद्धि वैश्विक स्तर पर अपने दुष्प्रभाव छोड़ेगी एवं धु्रवों पर विद्यमान जीव-जंतु भी इस ऊष्मा के साथ समाप्त हो जाएंगे, जो कि संपूर्ण सृष्टि के लिए महत्त्वपूर्ण है।
जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान से हुई हानि की भरपाई तो नहीं हो सकती किंतु भविष्य के नुकसान को निश्चित रूप से रोका जा सकता है। बढ़ते तापमान को रोकने के लिए और हिमखंडों को पिघलने से बचाने के लिए हर व्यक्ति को उत्तरदायी व्यवहार अपनाना होगा। इस भौतिकतावादी युग की भागदौड़ में पर्यावरण सम्मत जीवन के आधार को अपनाना होगा। ग्लेशियर को बचाने के लिए ऊर्जा एवं जल का उपयोग सीमित करने के साथ परिवहन के माध्यम से सृजित कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। पर्वतीय स्थलों पर नियंत्रित पर्यटन और मात्र पर्यावरण सम्मत उद्योगों की स्थापना संबंधी नीति पर कार्य करना होगा। इन संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यटन को उद्योग ना मानकर पर्यावरण प्रोत्साहन गतिविधि के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए। अन्यथा कार्बन के साथ-साथ दूषित पर्यावरण ग्लेशियर पिघलने का कारण बन जाएंगे। शासन स्तर पर तटीय एवं पर्वतीय क्षेत्रों में प्रदूषण विहीन उद्यम की अनुमति हेतु नियम एवं कानून स्थापित करने होंगे। अभियान के रूप में सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देने एवं निजी वाहनों के अतार्किक उपयोग को रोकने हेतु निर्णायक कदम उठाने की नितांत आवश्यकता है। ऐसा नहीं है कि मात्र तटीय या पर्वतीय क्षेत्र की आबादी से ही ग्लेशियर प्रभावित होते हैं। पृथ्वी पर व्याप्त समस्त जीव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए, मर्यादित व्यवहार ही जीवन का आधार है।

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