बढ़ते खर्चों का बन रहा ब्लू प्रिंट
प्राथमिक स्कूल से लेकर स्नातकोत्तर तक, हर स्तर पर शिक्षा का खर्च बढ़ता जा रहा है। स्कूल फीस 15 से 30 हजार रुपए सालाना, कोचिंग 3 से 10 हजार रुपए मासिक और स्मार्टफोन-इंटरनेट पर हर महीने अतिरिक्त खर्च—इन सबने अभिभावकों को मजबूर किया है कि वे पढ़ाई के लिए विशेष फंड बनाएं।
गैजेट्स व इंटरनेट ने बदली परिभाषा
बेटे को इंजीनियर बनाना है तो 5 साल पहले ही एसआइपी शुरू कर दी। यह कहना है कि पेशे से दुकानदार गोवर्धन सोनी का। हर महीने 3 हजार जमा कर रहे हैं, ताकि बाद में कर्ज न लेना पड़े। कोविड के बाद शिक्षा के डिजिटल होते ही खर्च की परिभाषा बदल गई है। अब हर घर में हाई-स्पीड इंटरनेट, लैपटॉप या टैब अनिवार्य हो गए हैं। एक सामान्य अभिभावक के लिए यह किसी किश्त जैसे हर महीने का खर्च बन चुका है।
बीमा और निवेश: भविष्य की ढाल
शहर में बीमा और डाकघर जैसी एजेंसियों के एजेंट बताते हैं कि चाइल्ड एजुकेशन प्लान्स और एसआइपी की मांग में बीते दो साल में 40 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है। फाइनेंशियल सलाहकार सौरभ जैन का कहना है कि अब लोग शादी से पहले बच्चों की पढ़ाई के लिए निवेश शुरू कर रहे हैं।
छात्रवृत्तियों का महासागर, पर नाव ही नहीं
देश-विदेश में उपलब्ध सैकड़ों छात्रवृत्तियों की जानकारी जैसलमेर के अधिकांश छात्रों और अभिभावकों को नहीं है। स्कूल स्तर पर मार्गदर्शन की कमी के चलते हर साल लाखों की छात्रवृत्ति यूं ही छूट जाती है। इंटर पास छात्रा रीमा कहती है कि मैंने सुना है स्कॉलरशिप होती है, पर आवेदन कैसे करें, कहां करें—यह कोई नहीं बताता।
जरूरत समझ की, व्यवस्था की नहीं
जानकारों के अनुसार शिक्षा अब केवल शिक्षक या संस्था की जिम्मेदारी नहीं रही। यह अभिभावकों के लिए भी एक वित्तीय यात्रा है—जहां समझदारी, जागरूकता और पूर्व-योजना की अहम भूमिका है। विशेषज्ञ की राय: पूर्व प्राचार्य अरविन्द कुमार बताते हैं कि पढ़ाई में खर्च किया गया हर रुपया, समाज के भविष्य में लगाया गया बीज है। फर्क बस यही है- अच्छे बीज के लिए सही समय और सही ज़मीन चाहिए।