गागरोन दुर्ग के ठीक सामने एक खेत के ऊंचे टीले पर बने लगभग 15 फीट के चौकोर पाषाण खंडों के चबूतरे पर संत पीपाजी के गुरु स्वामी रामानन्द की छतरी बनी है। यह छतरी वर्तमान में जर्जर हो रही है। इसके जीर्णोद्धार की दरकार है।
इतिहासकार ललित शर्मा के अनुसार प्राचीन धर्मग्रन्थों में यह वर्णन मिलता है कि संत पीपाजी ने काशी में स्वामी रामानन्द से गागरोन आने की प्रार्थना की गई। इस पर स्वामी रामानन्द संत कबीर, संत रेदास, संत धन्ना, संत सैन सहित करीब 40 शिष्यों के साथ गुजरात के द्वारिका तीर्थ की यात्रा करते समय काशी से गागरोन आए थे। गागरोन किले के सामने एक टीले पर उन्होंने चातुर्मास किया था। बाद में स्वामी रामानन्द के इस ठहराव स्थल पर पीपाजी ने कलात्मक छत्री का निर्माण कराया था।
शर्मा ने बताया कि कला शिल्प के आधार पर छतरी के स्तम्भ13वीं सदी के लगभग के प्रतीत होते हैं, जो कहीं दूसरे स्थान के किसी मन्दिर से लाकर यहां प्रयोग किए गए है। इनमें पांचवें, छठे व सातवें स्तम्भों पर मध्यकालीन शिलालेखों का अंकन है, जो धूल, धूप और बरसात के कारण अस्पष्ट होने से पढ़ने में नहीं आते हैं।
2002 में स्थापित की चरण पादुका
छत्री के भूतल के चबूतरे के मध्य 27 अप्रेल 2002 को पीपाधाम के तत्कालीन संत गणेशदास ने स्वामी रामानन्द की नवीन चरण पादुका स्थापित करवाई थी। यह चरण पादुका सफेद चौकोर पाषाण खण्ड पर बनी है जिनमें स्वामी रामानन्द के दोनों चरण, कमल पुष्प पर उकेरे हुए हैं तथा उनके आस-पास शंख, चन्द्रमा, पुष्प और चक्र का सुन्दर अंकन है। भक्तों द्वारा आज भी इनकी भक्ति भाव से पूजा की जाती है।