पानी में स्वच्छता लानी है तो प्रयास अनेक स्तरों पर करने होंगे। सबसे कारगर हथियार है सख्त सजाएं। ये सजा हर उस व्यक्ति, संस्था या उद्योग पर लागू करनी होंगी जो नदियों को नाले की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। बात चाहे गंगा की हो, नर्मदा की हो, महानदी, चंबल या कोई और नदी की। इनके तट पर स्थित हर शहर इनमें कचरा बहा रहा है। नालों के पानी को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाकर नदी में साफ पानी उतारने की बातें कागजों में ही असरदार दिखीं बस। सच्चाई ये है कि हजारों लाखों लीटर सीवेज रोज नदियों के पानी को जहरीला कर रहा है। धार्मिक महत्व वाली नदियों के किनारे जितनी गंदगी श्रद्धालु नहीं करते, उससे ज्यादा इनके किनारे लगे चंद उद्योगों से हो जाती है। ये उद्योग लगातार नदियों का साफ पानी इस्तेमाल कर रहे हैं और गंदगी को नदी में छोड़ रहे हैं।
विकास के नाम पर हर नदी के किनारे उद्योगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। नदियों के किनारे पेड़ गायब होते गए और इनकी जगह ले ली खेतों ने। सिंचित जमीन किसे नहीं चाहिए। पानी नदी का लेते हैं और बदले में यूरिया इसमें बहाते हैं। ये यूरिया पानी के खराब होने के सबसे बड़े कारणों में से एक है। पेड़ हटने से मिट्टी का कटाव हो रहा है और नदी अपने साथ बड़ी मात्रा में गाद लेकर बह रही है। ये गाद इन नदियों पर बने बांधों के लिए घातक सिद्ध होगी। इसके परिणाम भी बांध के आस पास रहने वाले निर्दोष ही भुगतेंगे। इन समस्त गतिविधियों को रोका जा सकता है सिर्फ सख्त सजाओं से। एक की सजा दूसरे के लिए मिसाल बनेगी। सजाएं ऐसी होना चाहिए कि लोगों को याद रहें। नमामि गंगे और नमामि नर्मदे अभियान चलाकर करोड़ों का जो खर्च हो रहा है, उनमें से कुछ राशि उनसे भी वसूली जाए जो नदियों के पानी का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं।