महाकुंभ के लिए गंगा को साफ करने वाले कमलेश सिंह ने बताई सच्चाई, कहा- 20 साल के बाद सूख जाएगा संगम
कमलेश सिंह की कोशिशों से गंगा की सफाई में सुधार हुआ। उन्होंने 2022 में एनजीटी में याचिका दायर कर प्रदूषण कम करने के लिए ठोस कदम उठाए, लेकिन स्थायी समाधान की आवश्यकता है।
सौरभ विद्यार्थी/प्रयागराज: प्रयागराज में महाकुंभ से एक महीने पहले तक गंगा का बहुत ही बुरा हाल था। तब के मुकाबले अभी गंगा काफी बेहतर स्थिति में है और इसका श्रेय प्रयागराज के कमलेश सिंह को भी जाता है। पत्रिका के संवाददाता सौरभ विद्यार्थी ने कमलेश सिंह से मुलाकात की और उनसे इस गंगा के साफ़ होने के पीछे की वजह जानी। पढ़िए कमलेश सिंह की कहानी सौरभ विद्यार्थी की जुबानी…
हम प्रयागराज के आलोपी बाग मोहल्ले में शहर की ऐतिहासिक ढिंगवस कोठी के पास ‘स्टूडेंट केमिस्ट’ नाम की दवा की दुकान की तलाश में है। हमें वहां जाकर ‘स्टूडेंट केमिस्ट’ की दूकान तो मिली लेकिन इस दूकान के मालिक कमलेश सिंह नहीं मिले, वहा हमें उनके दोस्त मनोज जी मिले जिन्होंने हमें बताया की दादा अभी संगम क्षेत्र की तरफ गए है, मोहल्ले वाले कमलेश सिंह को दादा के नाम से ही बुलाते हैं।
कैसे दिखते हैं कमलेश सिंह ?
अगले दिन हम कमलेश सिंह से मिलने फिर ढिंगवस कोठी के पास ‘स्टूडेंट केमिस्ट’ की दुकान पर पहुंच गए जहां हमारी मुलाकात कमलेश सिंह जी से होती है। आपको बता दें कमलेश सिंह का व्यक्तित्व भी उनकी दुकान के जैसा ही है। कद करीब पांच फुट होगा हल्का लंगड़ा कर चलते हैं।
साधारण व्यक्ति, असाधारण व्यक्तित्व !
वेशभूषा भी इतनी सरल कि अगर आप उन्हें पहचानते ना हों तो उन्हें देख कर भी उन्हें खोजते हुए आगे निकल जाएंगे। इस व्यक्तित्व को देख कर यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है कि यह व्यक्ति करीब 20 साल यहां का सभासद यानि ‘पार्षद’ रह चुका है और इन्हीं की कोशिशों की बदौलत बीते कुछ महीनों में गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए इतना कुछ हुआ है, जितना कई दशकों में नहीं हुआ।
2022 में एनजीटी में गंगा प्रदूषण के खिलाफ याचिका दायर की
कमलेश सिंह ने 2022 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में गंगा के प्रदूषण को लेकर एक याचिका दायर की थी, जिसका ऐसा असर हुआ कि जल निगम और प्रदूषण बोर्ड से लेकर जिला मजिस्ट्रेट तक सभी विभाग हिल गया।
20 साल में सुख जाएगा गंगा और यमुना का पानी
कमलेश सिंह जी ने पत्रिका से बातचीत के दौरान बताया कि 20 साल के बाद सब कुछ खत्म हो जाएगा नदियों का पानी सुख जाएगा। संगम में भी एक बूंद पानी नहीं रहेगा। उन्होंने आगे कहा कि फिर सरकार कहा पर लगाएगी संगम का मेला इसी वजह से वह 1983 से अलग अलग भूमिकाओं में गंगा की सेवा में लगे हुए हैं। कमलेश जी कहते है जब तक ज़िंदा हूं तब तक जी जान से नदियों के संरक्षण में लगा रहूंगा कोई साथ दे या ना दे।
गंगा का पानी आचमन योग्य नहीं- सिंह
कमलेश सिंह जी कहा की मेला प्रशासन ने जितने भी अस्थायी कदम उठाए है उनसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। वो आगे कहते है की इस पानी को श्रद्धालु आचमन तक नहीं करे सकते। महाकुंभ सिर पर था और नदी को स्वच्छ करने के दीर्घकालिक उपाय करने का समय नहीं था। ऐसे में एनजीटी के आदेश पर सभी विभागों ने अपनी अपनी योजनाएं बनाई और कई अस्थायी उपाय किए।
ऐसे साफ़ हुई गंगा
सिंह बताते हैं कि इसके तहत गंगा में 400-500 किलो पॉलीएल्युमीनियम क्लोराइड (पीएसी) नाम का केमिकल डाला गया। इसे प्रदूषित पानी में डाल देने से पानी का सारा कचरा नीचे बैठ गया फिर टिहरी बांध और कुछ बैराजों से पानी छोड़ा गया और जब वह पानी आया तो वो इस कचरे को आगे बहा ले गया।
इसके अलावा सीधे गंगा में गिरने वाले नालों में से 90 प्रतिशत को एसटीपी से जोड़ दिया गया। जो बाकी बचे उनमें जियो ट्यूब फिल्टर लगा दिए गए और कुछ नालों में अस्थायी एसटीपी लगा दिए गए। जियो ट्यूब कपड़े के ट्यूब होते हैं जिनसे हो कर जब पानी गुजरता है तो सॉलिड कचरा ट्यूब के अंदर ही रह जाता है।
उन्होंने बताया कि मेले में आने वाले करोड़ों लोगों के मल-मूत्र की सफाई के लिए भी व्यापक इंतजाम किया गया है। कई टॉयलेट लगाए गए हैं जिनके पीछे बड़े बड़े गड्ढे खोदे गए हैं। उनमें पहले पॉली लेयर बिछाया गया है, ताकि मल-मूत्र जमीन में ना जाए। गड्ढे भर जाने पर मल-मूत्र टैंकरों में भर कर एसटीपी भिजवा दिया जाता है।
कमलेश सिंह बताते हैं कि इन सब कोशिशों का असर यह हुआ कि महाकुंभ के पहले दिन जब वह नदी पर गए तो उन्होंने पाया कि पानी कम से कम देखने पर तो इतना साफ दिख रहा है कि उसमें आप अपना चेहरा देख सकते हैं।
कमलेश सिंह कहते है की मेला प्रशासन ने मेलें के अंदर पॉलिथीन का उपयोग तक नहीं बंद करा पाई। सिंह इन अस्थायी कदमों से खुश हैं, लेकिन वह चेताते हैं कि यह स्थिति बनाए रखने के लिए स्थायी कदम उठाने की जरूरत है। सिंह कहते हैं, “आज हमारी नदियां जो प्रदूषित हो रही हैं, उसका कारण यह है कि हम आगामी 20 साल की जनसंख्या को ध्यान में रखकर योजना नहीं बनाते हैं। यही वजह है कि एसटीपी की क्षमता धीरे धीरे कम हो जाती है, जिसकी वजह से नदियों में गंदा पानी जाने लगता है और नदियां प्रदूषित होती चली जाती हैं।”