Holi Celebration 2025: राजस्थान में यहां होली ऐसी भी…रंगों से ज्यादा जलती लकड़ी मारने और अंगारों पर चलने का क्रेज
Holi Special in Rajasthan : फिर चाहे जलती लकड़ी से एक-दूसरे को पीटना, अंगारों पर चलना हो या पेड़ पर बंधे कपड़े को उतारना, जनजाति क्षेत्र की अनूठी होली अलग ही अंदाज बयां करती हैं।
आशीष बाजपेयी Rajasthan Unique Holi: बांसवाड़ा। राजस्थान के दक्षिण अंचल में कुछ रिवाज ऐसे हैं, जो होली का उत्साह कई गुना बढ़ा देते हैं। ये जनजाति क्षेत्र के समाजों को उनके रीति-रिवाजों, पंरपराओं से जोड़े रखते हैं। वागड़ अंचल में अलग-अलग स्थानों पर ऐसी ही कई रिवाजों का निवर्हन किया जाता है। फिर चाहे जलती लकड़ी से एक-दूसरे को पीटना, अंगारों पर चलना हो या पेड़ पर बंधे कपड़े को उतारना। जनजाति क्षेत्र की अनूठी होली अलग ही अंदाज बयां करती हैं।
डूंगरपुर के कोकापुर गांव में रंग खेलने से पहले अनूठी परंपरा का निर्वहन किया जाता है। होली जलने के बाद दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व अंगारों पर चलने की परंपरा है। इसके गेर नृत्य खेला जाता है।
पत्थर और कंडे मारकर मनाते हैं होली
डूंगरपुर के भीलूड़ा और सागवाड़ा में पत्थर और कंडे मारकर होली मनाने का चलन है। भीलूड़ा में धुलंडी के दिन रघुनाथ मंदिर के पास पत्थरों की राड खेली जाती है। सागवाड़ा शहर में धुलंडी के अगले दिन से पंचम तक अलग-अलग मोहल्लों में कंडों की राड खेलते हैं।
एक-दूसरे पर फेंकते जली लकड़ियां
बांसवाड़ा के घाटोल में अनूठे प्रकार से होली दहन और होली मनाई जाती हैं। सुबह चार बजे होलिका दहन के बाद बांसफोड़ समाज के लोग होली की अधजली लकड़ियों को एक-डेढ़ फीट के टुकड़ों में काट देते हैं। सुबह सात बजे लकड़ियों को दो ग्रुप बना एक-दूसरे पर फेंका जाता है।
फुतरा पंचमी पर करते शौर्य का प्रदर्शन
डूंगरपुर जिले के ओबरी गांव में होली के बाद पंचमी पर फुतरा पंचमी मनाते हैं। इस रस्म को मुख्यतौर पर ब्राह्मण, राजपूत और पाटीदार समाज मिलकर करते हैं। इसमें गांव के खुले स्थान पर खजूर के सबसे ऊंचे पेड़ पर ब्राह्मण समाज की ओर से एक सफेद कपड़ा (फुतरा) बांधा जाता है।
दोपहर में मेला भरने के बाद गांव और तीनों समाज के युवा और अन्य लोग एकत्र होकर टोलियों में ढोल नगाड़ों संग फुतरा बंधे स्थान पर पहुंचते हैं। जहां राजपूत समाज के युवा खजूर के पेड़ पर चढ़ सफेद कपड़े (फुतरा) उतारने का प्रयास करते हैं। और ब्राह्मण और पाटीदार समाज के युवा इन्हें रोकने का प्रयास करते हैं। डूंगरपुर के चौरासी क्षेत्र में एकम से त्रयोदशी तक क्षेत्र के भचड़िया, ढेचरा मसूर, ढेचराभगत, मालाखोलड़ा, झरनी, डूंका, पुनावाड़ा गांवों मे भरने वाले इन मेलों में फुतरा छोड़ने का रिवाज है।
पहले चलते अंगारों पर फिर उड़ता गुलाल
डूंगरपुर के कोकापुर गांव में रंग खेलने से पहले अनूठी परंपरा का निर्वहन किया जाता है। होली जलने के बाद दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व अंगारों पर चलने की परंपरा है। इसके गेर नृत्य खेला जाता है।
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