फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी का अर्थ मनुष्य को संकट से मुक्ति करना। इस दिन गणपति भगवान के द्विजप्रिय गणेश स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर पार्वती नन्दन गणेश जी के भक्त उनकी कृपा प्राप्ति हेतु कठिन व्रत का पालन करते हैं। इस व्रत के पालन हेतु चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी तिथि का चयन किया जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिव्य अवसर पर विघ्न विनाशक भगवान श्री गणेश जी की पूजा-अर्चना करने से जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की विघ्न-बाधाओं का निवारण होता है। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के भक्तगण सूर्योदय से चन्द्रोदय तक कठिन व्रत का पालन करते हैं। इस व्रत में भगवान गणेश के उपासकों द्वारा फलों, तथा भूमि के भीतर उगने वाले जड़ों अथवा वनस्पतियों का ही सेवन किया जाता है। साबूदाना खिचड़ी, आलू तथा मूँगफली आदि को इस व्रत में उपयुक्त आहार माना जाता है। चन्द्र दर्शन के उपरान्त ही द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का पारण किया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी तिथि और शुभ योग
हिंदु पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 15 फरवरी 2025 को रात के 11 बजकर 52 मिनट पर होगी। वहीं इसका समापन 17 फरवरी को सुबह के 2 बजकर 15 मिनट पर होगा इस लिए द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 16 फरवरी 2025 रविवार को मनाई जाएगी। इस साल संकष्टी चतुर्थी पर सर्वार्थ सिद्ध योग और अमृत सिद्ध योग का निर्माण हो रहा है।
पूजा शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार सकंष्टी चतुर्थी के दिन पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 5 बजकर 16 मिनट से सुबह के 6 बजकर 07 मिनट तक। इसके बाद विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 28 मिनट से दोपहर 03 बजकर 12 मिनट तक। वहीं इसके अलावा गोधूलि मुहूर्त शाम 06 बजकर 09 मिनट से शाम 06 बजकर 35 मिनट तक और अमृत काल रात्रि 09 बजकर 48 मिनट से रात्रि 11बजकर 36 मिनट तक रहेगा।
पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर की सफाई करें और एक साफ चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। चौकी पर भगवान गणेश और शिव परिवार की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान गणेश को फल, फूल, दूर्वा, अक्षत, धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें। गणेश जी को सिंदूर चढ़ाएं और उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं। गणेश मंत्रों का जाप करें और मोदक, फल, मिठाई का भोग लगाएं। अंत में भगवान गणेश सहित सभी देवी-देवताओं की आरती उतारें और सुख-शांति की कामना करें। पूजा के बाद, जरूरतमंदों को तिल का दान करना शुभ माना जाता है। यह भी पढ़े: मनचाहा वर पाने के लिए शिवरात्रि पर इस विधि से करें पूजा, हो सकती है मनोकामना पूरी डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।