हमले से छह दिन पहले हुआ था ट्रांसफर
एनआईए की पूछताछ में सामने आया है कि पाकिस्तान के लिए जासूसी करने वाले सीआरपीएफ जवान मोती राम जाट आतंकी हमले से पहले पहलगाम में ही सीआरपीएफ की 116वीं बटालियन में तैनात था। इंडिया टुडे की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह दावा किया गया है कि 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले से ठीक छह दिन पहले ही उसका ट्रांसफर हुआ था। इस हमले में पाकिस्तानी आतंकियों ने पहलगाम में घूमने आए करीब 28 पर्यटकों की जान ले ली थी। आतंकियों ने पर्यटकों को धर्म पूछकर मौत के घाट उतारा था। मारे गए पर्यटकों में ज्यादातर लोग हिंदू समुदाय से थे। इस हमले के बाद पूरे देश में पाकिस्तान के प्रति आक्रोश फैल गया था।
गोपनीय जानकारी लीक करने का आरोप
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) की प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि मोती राम जाट लंबे समय से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों के संपर्क में था। यह भी पता चला है कि वह साल 2023 से ही पैसों के बदले देश से गद्दारी कर रहा था। जाट ने भारतीय सुरक्षा बलों की ऑपरेशनल रणनीतियों, मूवमेंट से जुड़ी जानकारियां और महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों की लोकेशन पाकिस्तान को मुहैया कराई थीं। इसके बदले में पाकिस्तान से उसे मोटी रकम दी गई थी। एनआईए को संदेह है कि ये जानकारियां पहलगाम हमले में आतंकियों की मदद का कारण बनीं। सोशल मीडिया गतिविधियों से हुआ खुलासा
सीआरपीएफ के बयान के अनुसार, मोती राम जाट की सोशल मीडिया पर संदिग्ध गतिविधियों के चलते उस पर केंद्रीय एजेंसियों की नजर पड़ी। इसके बाद उसकी निगरानी शुरू की गई। जब पर्याप्त सबूत जुटा लिए गए, तब दिल्ली से उसकी गिरफ्तारी की गई। सीआरपीएफ ने बताया कि उसे 21 मई से सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है और आगे की जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया गया है।
दूसरी ओर एनआईए अधिकारियों ने बताया कि आरोपी सीआरपीएफ जवान मोतीराम जाट से पूछताछ की जा रही है। ताकि यह पता चल सके कि उसने अब तक पाकिस्तान को क्या-क्या गोपनीय जानकारियां दी हैं और वह किन-किन पाकिस्तानी एजेंटों के संपर्क में था। यह भी जांच का विषय है कि वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का मोहरा कैसे बना और उसे किस माध्यम से संपर्क किया गया। दिल्ली की एक विशेष अदालत में पेश किए जाने के बाद उसे 6 जून तक की हिरासत में भेज दिया गया है।
राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर सख्त रुख
यह मामला एक बार फिर इस बात की पुष्टि करता है कि पाकिस्तान भारतीय सुरक्षा संस्थानों को भीतर से कमजोर करने की साजिशों में लगा हुआ है। लेकिन इस बार यह साजिश एक ऐसे व्यक्ति के जरिए सामने आई, जो खुद देश की रक्षा में तैनात था। सीआरपीएफ और केंद्रीय एजेंसियों की सतर्कता के चलते समय रहते इस राष्ट्रविरोधी गतिविधि का भंडाफोड़ किया जा सका। सीआरपीएफ जवान की गिरफ्तारी सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक चेतावनी है कि आंतरिक सुरक्षा के लिए केवल बाहरी खतरों से निपटना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि भीतर बैठे संभावित गद्दारों की पहचान भी उतनी ही जरूरी है। यह मामला उन सभी सुरक्षाकर्मियों के लिए एक सबक है, जो देशभक्ति के नाम पर वर्दी पहनते हैं लेकिन निजी स्वार्थ में देश को गिरवी रखने को तैयार हो जाते हैं।