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उदयपुर

Holi 2025 : राजस्थान के इस गांव में बारूद से खेलते हैं लोग होली, इस रोचक परंपरा को जानकर हो जाएंगे हैरान

Jamra Beej Festival : राजस्थान के इस गांव में एक अनूठी परम्परा है। इस परंपरा को जानकर हैरान रह जाएंगे। इस गांव में लोग बारूद से खेलते हैं होली। जानें इस रोचक कहानी को।

उदयपुरFeb 23, 2025 / 08:51 am

Sanjay Kumar Srivastava

Rajasthan In this Gaon Menar People Play Holi with Gunpowder You Surprised to know this interesting Tradition
उमेश मेनारिया
Jamra Beej Festival : देशभर में होली को रंग पर्व के रूप में मनाया जाता है, लेकिन मेवाड़ का एक गांव ऐसा है, जहां होली खेली जाती है बारूद के धमाके से। 400 साल से भी पुरानी इस अनूठी परंपरा के पीछे की वजह जानकर हैरान रह जाएंगे। यह जश्न होता है मुगलों पर मेवाड़ की जीत का। यह खास दिन होता है जमरा बीज का और इस अनूठी परंपरा को निभाता है मेवाड़ का ऐतिहासिक गांव मेनार।

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15 मार्च को है इस साल जमरा बीज पर्व

उदयपुर से 45 और महाराणा प्रताप एयरपोर्ट डबोक से महज 25 किमी दूरी पर स्थित मेनार गांव के ग्रामीण जमरा बीज पर्व की तैयारियों में जुट गए हैं। इस साल जमरा बीज पर्व 15 मार्च को है। बर्ड विलेज के नाम से विख्यात मेनार गांव में धुलंडी के अगले दिन शौर्य की झलक और इतिहास की महक बिखरती नजर आएगी। तलवारें खनकायी जाएगी, वहीं बारूदी धमाकों से रणभूमि का नजारा उभर आएगा।
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मेवाड़ी पोशाक में दिखेंगे योद्धा

पंडित मांगीलाल आमेटा बताते हैं कि मेनार में होलिका दहन 13 मार्च रात 11.28 बजे होगा। अगले दिन 14 को धुलंडी और 15 को जमरा बीज पर्व मनाया जाएगा। इस दिन पांच हांस (मोहल्लों) से ओंकारेश्वर चौक पर लोग जुटेंगे। मेनारवासी मेवाड़ी पोशाक में सज-धज कर योद्धा की भांति दिखेंगे। ढोल की थाप पर कूच करते हुए हवाई फायर और तोप से गोले दागे जाएंगे। आधी रात में तलवारों से जबरी गेर खेली जाएगी। योद्धाओं की भांति पुरुष ढोल की थाप पर एक हाथ में खांडा और दूसरे में तलवार लेकर गेर नृत्य करेंगे।
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जमरा बीज पर जरूर आते हैं मेवारवासी

पंडित मांगीलाल आमेटा आगे बताते हैं कि आतिशी धमाकों के बीच तलवारों की खनक माहौल को युद्ध का मैदान जैसा बनाती है। इसकी तैयारियां अभी से शुरू हो चुकी है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों और विदेश तक में रहने वाले मेवारवासी जमरा बीज पर आते हैं, भले ही वे दिवाली पर गांव आए न आए।
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इतिहास के पन्नों से…

महाराणा प्रताप के अंतिम समय में जब समूचे मेवाड़ में जगह-जगह मुगल सैनिकों ने छावनियां डाली हुई थी, उस दौरान मुगलों ने मेवाड़ को अपने अधीन करने की पूरी कोशिश की, लेकिन महाराणा अमरसिंह प्रथम के नेतृत्व में हमेशा मुगलों को मुंह की खानी पड़ी। मुगलों की एक मुख्य चौकी ऊंटाला वल्लभगढ़ (वर्तमान वल्लभनगर) में स्थापित थी, जिसकी उपचौकी मेनार में थी। महाराणा प्रताप के निधन के बाद मुगलों के आतंक से त्रस्त होकर मेनार के मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगल सेना को हटाने की रणनीति बनाई। ओंकारेश्वर चबूतरे पर निर्णय लेकर ग्रामीणों ने मुगलों की चौकी पर हमला बोला। युद्ध में मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। वह दिन विक्रम संवत 1657 (सन 1600) चैत्र सुदी द्वितीया का था। युद्ध में मेनारिया ब्राह्मण भी वीरगति को प्राप्त हुए थे। मुगलों से जीत की खुशी में महाराणा ने मेनार की 52 हजार बीघा भूमि पर लगान माफ कर दिया था। मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा अमरसिंह प्रथम ने ग्रामीणों को शौर्य उपहार स्वरूप शाही लाल जाजम, नागौर के रणबांकुरा ढोल, सिर पर कलंगी, ठाकुर की पदवी और 17वें उमराव की पदवी दी थी।

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