भारत-अमरीका संबंध : दीर्घकालिक लाभ को अधिकतम करने की जरूरत
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में इतनी जल्दी भारतीय प्रधानमंत्री की अमरीका यात्रा को असाधारण कहा जाना चाहिए। शिखर वार्ता का सबसे पहला निहितार्थ यह है कि ट्रंप प्रशासन अमरीकी अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण मुद्दों को अतिशीघ्र सुलझाना चाहता है।
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विनय कौड़ा, अन्तरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन में हुई खास मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को मजबूती मिली है। भारत, इंडो-पैसिफिक को पश्चिम एशिया से जोडऩे वाली कनेक्टिविटी परियोजनाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। पश्चिम एशिया के प्रमुख देशों के साथ भारत के मजबूत संबंध उसे भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) जैसी रणनीतिक पहल में एक मजबूत भागीदार के रूप में स्थापित करते हैं। आईएमईसी, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को एक रणनीतिक संतुलन प्रदान कर सकता है जिससे बहुधु्रवीय विश्व व्यवस्था में भारत का नेतृत्व और मजबूत हो सकता है। आइ2यू2 (भारत-इजराइल, यूएस-यूएई) के झंडे तले भी अगले छह महीने में एक नई पहल का ऐलान किया जाएगा। मोदी और ट्रंप ने एक नया द्विपक्षीय मंच ‘हिंद महासागर रणनीतिक उद्यम’ लॉन्च किया है। अमरीका द्वारा यह पहल उस समय की गई है जब ट्रंप अनेक बहुपक्षीय समूहों से बाहर निकलने की बात कर रहे हैं। उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग होने का फैसला कर ही लिया है। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) देशों को वित्तीय बोझ साझा करने के लिए ट्रंप का दबाव लगातार जारी है। दरअसल, ट्रंप अपने राजनीतिक दृष्टिकोण में बहुत ही चालाकी से कदम उठा रहे हैं। उन्हें अच्छी तरह से पता है कि अमरीका को किस संगठन से कब और किस प्रकार अपना जुड़ाव रखना है। जहां तक भारत-चीन सीमा तनाव को समाप्त करने में ट्रंप की ‘मदद’ की पेशकश का सवाल है तो भारत सरकार ने उसे खारिज कर दिया। दरअसल जब ट्रंप ने वाशिंगटन में मोदी के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में नई दिल्ली-बीजिंग के बीच मध्यस्थता की बात कही तो मोदी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बाद में एक ब्रीफिंग में स्पष्ट कर दिया कि मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से सुलझाया जा रहा है। वहीं रूस-यूक्रेन जंग समाप्त करने में भारत की भूमिका के बारे में ट्रंप ने कुछ नहीं कहा। जैसे-जैसे भारत, अमरीका के साथ अपने जुड़ाव को व्यापारिक और राजनीतिक रूप से गहरा कर रहा है, तो आवश्यकता इस बात की है कि दीर्घकालिक लाभ को अधिकतम करते हुए रणनीतिक स्वायत्तता को बरकरार रखा जाए। साझा लोकतांत्रिक मूल्य और भू-सामरिक हितों की बयानबाजी हम पहले भी सुनते आए हैं और आगे भी सुनते रहेंगे। लेकिन ट्रंप के नेतृत्व वाले इस नए अमरीका के साथ भारत के जुड़ाव की आधारशिला आर्थिक आत्मनिर्भरता और सैन्य आधुनिकीकरण द्वारा रखनी होगी।
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