ट्रेनी डॉक्टर्स को दे गए थे जिम्मेदारी-
मेडिकल कॉलेज बनने के बाद 2011 जब यहां का वृद्धाश्रम खुरई रोड पर शिफ्ट हुआ तो बुजुर्गों ने पहले बैच के ट्रेनी डॉक्टर्स को मंदिर की जिम्मेदारी सौंप दी थी। जिन्होंने मंदिर को बचाने न सिर्फ संघर्ष किया बल्कि पॉकेट मनी और स्थानीय सहयोग से जीर्णोद्धार भी कराया।
2015 में प्राण प्रतिष्ठा-
मृत्यूंजय महादेव समिति के अध्यक्ष डॉ. उमेश पटेल ने बताया कि प्रथम बैच के छात्रों के अलावा इंजीनियर अविनीश शर्मा, अभिषेक व्यास, मोहन, सोनू चुटीले, आर्य तिलक के साथ मंदिर की रूपरेखा तैयार की। विधायकशैलेंद्र जैन, तत्कालीन सांसद लक्ष्मीनारायण यादव, ददजी शिष्य मंडल से सहयोग लेकर मंदिर का कायाकल्प कराया। अपनी शादी के रिसेप्शन के लिए रखे पैसे भी लगा दिए थे। 2015 में मंदिर में महादेव परिवार की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम हुआ था, जिसमें स्व. पंडित देव प्रभाकर शास्त्री (दद्दाजी) शामिल हुए थे।
70 किग्रा ड्राइफ्रूट लग जाते हैं-
महाशिवरात्रि के भंडारा को लेकर समिति के सदस्य एक माह पहले ही तैयारियों में लग जाते हैं। 25 क्विंटल आटा, 70 टीन तेल, 25 सौ लीटर दूध, 4 क्विंटल शक्कर, 4 क्विंटल चावल, 70 किग्रा ड्राइफ्रूट सहित अन्य सामग्री भंडारे में लगती है। भंडारे में पूरे दिन व रात का खाना भी मरीज व परिजन यहीं करते हैं। पूरी-सब्जी और खीर के लिए यहां लाइनें लगी रहतीं हैं।
मान्यता का संकट महादेव ने दूर किया था-
समिति अध्यक्ष डॉ. उमेश पटेल की माने तो 2015 में जब प्रथम बैच के छात्रों की एमबीबीएस पूरी हुई तो एनएमसी ने स्टाफ व संसाधनों के अभाव में बीएमसी की मान्यता शून्य कर दी थी, 2016 के लिए नए प्रवेश भी नहीं हुए थे। ऐसे में सभी ने महादेव से प्रार्थना व सेवा की। कुछ समय बाद भोलेनाथ ने सब ठीक कर दिया। आज भी प्रथम बैच के डॉक्टर शिवरात्रि पर भंडारे में शामिल होते हैं।
पूजन के दौरान पखारे जाते हैं बुजुर्गों के पैर-
प्रत्येक शिवरात्रि पर आयोजन समिति खुरई रोड स्थित वृद्धाश्रम से बुजुर्गों को ससम्मान आयोजन स्थल पर लेकरन आते हैं। महादेव की पूजा के साथ-साथ इन बुजुर्गों का पूजन, सम्मान व पांव भी पखारे जाते हैं।