सीएमओ से तुरंत आदेश हुए, खेल सचिव ने 4 सदस्यीय कमेटी गठित कर स्टेडियम का दौरा करने के आदेश दिए। तुरत-फुरत में कमेटी ने स्टेडियम का दौरा किया और उन्हें पूरे स्टेडियम मेें नशे का सामान फैला मिला। जिम्मेदारी तय करते हुए कमेटी ने 4 कर्मियों को नोटिस जारी कर 24 घंटे में जवाब मांगा। तब लगा अब नशे पर लगाम लगेगी।
पर इतना सब कुछ होने के बाद भी स्टेडियम की स्थिति वही ढाक के तीन पात। पत्रिका ने जब स्टेडियम का फिर से दौरा किया तो हालात पूर्व की भांति जस के तस नजर आए …. नशे के इंजेक्शन और बड़ी मात्रा सिरींजें फैली मिलीं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोग अपने बच्चों को यहां भेजना बंद कर देंगे क्योंकि वे अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाने के लिए भेजते हैं न कि नशेड़ी बनाने के लिए। इससे पहले कि खेल का मंदिर…. खिलाड़ियों के लिए वरदान की जगह अभिशाप बने आला अधिकारियों को सख्त कदम उठाने होंगे।
कागजों में दफन हुई रिपोर्ट
खेल सचिव के आदेश से बनी कमेटी के दौरे के बाद राजस्थान राज्य क्रीड़ा परिषद के सचिव राजेंद्र सिसोदिया ने तुरंत एक्शन लेते हुए 7 वरिष्ठ अधिकारियों को रोटेशन से स्टेडियम का दिन और रात में निरीक्षण करने का आदेश दिया। अधिकारियों ने निरीक्षण शुरू किया और पहली रिपोर्ट ने खेल के मंदिर की बखिया उधेड़ दी। रिपोर्ट में स्टेडियम में चारों ओर नशे का सामान बिखरा होने की बात कही। इसके अलावा खेल एकेडमियों के दयनीय हालात बयां किए कि एकेडमियों के बाहर उचित लाइट की व्यवस्था तक नहीं है ऐसे में यहां रह रही बेटियां की सुरक्षा पर सवाल उठाया गया। इस रिपोर्ट को पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि स्थिति कितनी गंभीर है। पर अगली रिपोर्टों को कागजों में दफन कर दिया गया।
कमेटी ने दिया था 4 कर्मियों को नोटिस..
कमेटी ने स्टेडियम का निरीक्षण कर 4 कर्मियों को नोटिस देकर जवाब मांगा था। कमेटी ने मनीष बाजिया, एईएन, (सफाई व्यवस्था का जिम्मा), दो एथलेटिक कोच विनोद पूनिया व सुरेंद्र सिंह और स्टेडियम सुपरवाइजर अतुल शर्मा को कारण बताओ नोटिस जारी किए थे।
नाडा/वाडा बोर्ड के क्या मायने
स्टेडियम में नाडा/वाडा का बोर्ड लगाकर और सात अधिकारियों को निरीक्षण का जिम्मा देकर स्पोर्ट्स काउंसिल ने मामले की इतिश्री कर दी गई। सिर्फ बोर्ड लगाने से कुछ होगा समझ से परे है। अगर स्टेडियम में इस तरह नशे का सामान मिलता रहा तो यह खेल और खिलाड़ियों के अच्छा नहीं है। परिणाम तभी निकल सकेंगे जब सही दिशा में कार्य हो। अगर कोचों के भरोसे सुरक्षा का जिम्मा छोड़ दिया जाएगा तो फिर कोचिंग कौन करेगा। वहीं दूसरी ओर साफ-सफाई की जिम्मेदारी जिस अधिकारी के पास है उसे अन्य कार्यों से फुर्सत नहीं है।